शराब विरोधी आंदोलनों के लिए मशहूर पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड के लोग अब महिलाओं की ओर से संचालित की जा रही मधुशालाओं में पैमाना छलका सकेंगे. उत्तराखण्ड में अब महिलाऐं भी मधुशाला चलाने के मामले में पुरूषों से पीछे नहीं हैं. उन्होंने 29 मधुशालाएं अपने नाम आवंटित कराने में कामयाबी हासिल कर ली है. राज्य सरकार ने हाल ही में विभिन्न जिलों में देशी और विदेशी शराब की बिक्री के लिए आवंटित की गई दुकानों में 29 दुकानें महिलाओं को आवंटित की हैं.
राज्य के आबकारी विभाग के सूत्रों ने बताया कि इस साल शराब की अधिकृत बिक्री के लिए दुकानों के आवंटन हेतु आश्चर्यजनक तरीके से पांच हजार से भी अधिक महिलाओं ने आवेदन किया था. हालांकि लाटरी के माध्यम से किये गये आवंटन में केवल 29 महिलाओं को ही सफलता मिली. बाकी दुकानें पुरूषों को मिली हैं.
सूत्रों ने बताया कि तीर्थ नगरी हरिद्वार में सबसे अधिक करीब 27 महिलाओं ने दुकान के लिए आवेदन किया था लेकिन मात्र एक महिला को ही दुकान आवंटित हुई. इसी तरह पर्यटन नगरी नैनीताल जिले में कुल 1200 महिलाओं ने शराब की दुकान के लिए अपना भाग्य आजमाया था जिनमें से सात महिलाओं को दुकानें आवंटित हुई.
अल्मोड़ा जिले में 31 महिलाओं ने मधुशालाओं के लिए आवेदन किया था लेकिन एक ही महिला को दुकान आवंटित हो पायी जबकि उत्तरकाशी जिले में 30 महिला आवेदनकर्ताओं में से दो को सफलता मिली. पौड़ी जिले में कुल 91 महिलाओं ने आवेदन किया था उनमें से तीन को मधुशाला चलाने की इजाजत मिली. आबकारी विभाग के सूत्रों ने बताया कि राजधानी देहरादून में 950 महिलाएं मधुशाला चलाना चाहती थीं लेकिन उनमें 15 को ही सफलता मिल पायी.
पिथौरागढ में 21, चम्पावत में 31, चमोली में 44, टिहरी में 74, बागेश्वर में दो और रूद्रप्रयाग में चार महिलाओं ने मधुशाला चलाने के लिए अनुमति चाही थी लेकिन इन सभी महिलाओं को निराश होना पड़ा. आवेदनकर्ताओं के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि जहां पहाड़ी इलाकों में मधुशाला चलाने में महिलाओं को रुचि कम है वहीं मैदानी इलाकों में इस काम में बेझिझक उनमें पुरूषों से भी आगे जाने की ललक है.
हरिद्वार, देहरादून के मैदानी इलाकों में 35 सौ से भी अधिक महिलाओं ने आवेदन देकर यह साबित कर दिया कि उन्हें इस काम में उतरने में कोई संकोच नहीं है. इस सिलसिले में समाज सेवी तथा अधिवक्ता सुरेश सिंह रावत का मानना है कि पर्वतीय समाज को नुकसान पहुंचाने वाले शराब के पक्ष में महिलाएं कतई नहीं हो सकती.
कुछ पुरूषों ने ही महिलाओं के नाम पर दुकानों को हथियाने की नियत से महिलाओं को आगे किया है. महिला आंदोलनों से जुड़ी सुकीर्ति देवी ने बताया कि महिलाओं ने पहाड़ी राज्य में शराब के विरोध में लम्बे समय तक आंदोलन किया है. इसलिए ऐसा संभव नहीं हो सकता कि वे कभी यह चाहें कि उनके पड़ोस या परिवार के लोग शराब का सेवन करें. महिलाओं को तो रबर स्टैम्प के रूप में इस्तेमाल किया गया है.
देहरादून जिले में ही अकेले आबकारी विभाग को शराब की दुकानों के आवंटन से 124 करोड़ रूपये की आमदनी हुई है. जिले में विदेशी शराब की 35 और देशी शराब की 21 दुकानें हैं. यहां विदेशी शराब के लिए 35 सौ लोगों ने आवेदन किया था और देशी शराब के लिए आठ सौ आवेदन मिले थे. इसमें 950 महिलाओं के भी आवेदन शामिल थे. नौ महिलाओं को विदेशी शराब और छह महिलाओं को देशी शराब की दुकान चलाने की इजाजत मिली है.
पूरे उत्तराखण्ड में कुल 469 मधुशालाओं का आवंटन लॉटरी के माध्यम से किया गया जबकि पांच दुकानों के लिए बाद में किया जायेगा.
राज्य के आबकारी विभाग के सूत्रों ने बताया कि इस साल शराब की अधिकृत बिक्री के लिए दुकानों के आवंटन हेतु आश्चर्यजनक तरीके से पांच हजार से भी अधिक महिलाओं ने आवेदन किया था. हालांकि लाटरी के माध्यम से किये गये आवंटन में केवल 29 महिलाओं को ही सफलता मिली. बाकी दुकानें पुरूषों को मिली हैं.
सूत्रों ने बताया कि तीर्थ नगरी हरिद्वार में सबसे अधिक करीब 27 महिलाओं ने दुकान के लिए आवेदन किया था लेकिन मात्र एक महिला को ही दुकान आवंटित हुई. इसी तरह पर्यटन नगरी नैनीताल जिले में कुल 1200 महिलाओं ने शराब की दुकान के लिए अपना भाग्य आजमाया था जिनमें से सात महिलाओं को दुकानें आवंटित हुई.
अल्मोड़ा जिले में 31 महिलाओं ने मधुशालाओं के लिए आवेदन किया था लेकिन एक ही महिला को दुकान आवंटित हो पायी जबकि उत्तरकाशी जिले में 30 महिला आवेदनकर्ताओं में से दो को सफलता मिली. पौड़ी जिले में कुल 91 महिलाओं ने आवेदन किया था उनमें से तीन को मधुशाला चलाने की इजाजत मिली. आबकारी विभाग के सूत्रों ने बताया कि राजधानी देहरादून में 950 महिलाएं मधुशाला चलाना चाहती थीं लेकिन उनमें 15 को ही सफलता मिल पायी.
पिथौरागढ में 21, चम्पावत में 31, चमोली में 44, टिहरी में 74, बागेश्वर में दो और रूद्रप्रयाग में चार महिलाओं ने मधुशाला चलाने के लिए अनुमति चाही थी लेकिन इन सभी महिलाओं को निराश होना पड़ा. आवेदनकर्ताओं के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि जहां पहाड़ी इलाकों में मधुशाला चलाने में महिलाओं को रुचि कम है वहीं मैदानी इलाकों में इस काम में बेझिझक उनमें पुरूषों से भी आगे जाने की ललक है.
हरिद्वार, देहरादून के मैदानी इलाकों में 35 सौ से भी अधिक महिलाओं ने आवेदन देकर यह साबित कर दिया कि उन्हें इस काम में उतरने में कोई संकोच नहीं है. इस सिलसिले में समाज सेवी तथा अधिवक्ता सुरेश सिंह रावत का मानना है कि पर्वतीय समाज को नुकसान पहुंचाने वाले शराब के पक्ष में महिलाएं कतई नहीं हो सकती.
कुछ पुरूषों ने ही महिलाओं के नाम पर दुकानों को हथियाने की नियत से महिलाओं को आगे किया है. महिला आंदोलनों से जुड़ी सुकीर्ति देवी ने बताया कि महिलाओं ने पहाड़ी राज्य में शराब के विरोध में लम्बे समय तक आंदोलन किया है. इसलिए ऐसा संभव नहीं हो सकता कि वे कभी यह चाहें कि उनके पड़ोस या परिवार के लोग शराब का सेवन करें. महिलाओं को तो रबर स्टैम्प के रूप में इस्तेमाल किया गया है.
देहरादून जिले में ही अकेले आबकारी विभाग को शराब की दुकानों के आवंटन से 124 करोड़ रूपये की आमदनी हुई है. जिले में विदेशी शराब की 35 और देशी शराब की 21 दुकानें हैं. यहां विदेशी शराब के लिए 35 सौ लोगों ने आवेदन किया था और देशी शराब के लिए आठ सौ आवेदन मिले थे. इसमें 950 महिलाओं के भी आवेदन शामिल थे. नौ महिलाओं को विदेशी शराब और छह महिलाओं को देशी शराब की दुकान चलाने की इजाजत मिली है.
पूरे उत्तराखण्ड में कुल 469 मधुशालाओं का आवंटन लॉटरी के माध्यम से किया गया जबकि पांच दुकानों के लिए बाद में किया जायेगा.
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aap kee rachna padhee hai