रविवार, 4 अप्रैल 2010

बाबा रामदेव जी महाराज

लगता है अब बाबा रामदेव ने यह तय कर लिया है कि ेव देश के भ्रष्ट और बेईमान नेताओं को उनकी असली जगह दिखाकर ही दम लेगें। बाबा रामदेव ने स्वाभिमान ट्रस्ट के माध्यम से उन लोगों को सामने लाना शुरु कर दिया है जो रात-दिन देश के लिए सोचते हैं, जीते हैं और देश के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। बाबा रामदेव ने अपने स्वाभिमान ट्रस्ट का सचिव राजीव दीक्षित को बनाया है जो विगत कई बरसों से देश में असली आजादी की लड़ाई अकेले अपने दम पर ही लड़ रहे हैं। राजीव दीक्षित ऐसे धुनी व्यक्ति हैं जो विगत 25 सालों से देश की मल्टी नेशनल कंपनियों और औद्योगिक घरानो के खिलाफ वैचारिक लडा़ई लड़ रहे हैं। कई साल पहले राजीव दीक्षित अपने कैसेटों के जरिए लोगों में राष्ट्र भक्ति का अलख जगाते थे। हरिद्वार में बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ में आयोजित स्वाभिमान ट्रस्ट के देश भर के पदाधिकारियों के सम्मेलन में राजीव दीक्षित ने एक बार फिर अपने धारदार तर्कों और सरकारी आँकड़ों के जरिए यह बताया कि सरकार और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ मिलकर किस तरह देश के करोड़ों लोगों को लूट रही है। उन्होने कहा कि सरकार ने केरल की समुद्री सीमा में स्थित दुनिया के सबसे खूबसूरत द्वीपों में से एक वाईपिन द्वीप को विदेशी कंपनियों को परमाणु कचरा डालने के लिए सौंप दिया है। श्री दीक्षित ने कहा कि अंग्रेजों के आने के पहले हमारा देश इतना खुशहाल था जिसकी बराबरी दुनिया का कोई देश नहीं कर सकता था। देश से 21 प्रतिशत निर्यात होता था अमरीका के साथ ही फ्राँस, स्वीडन, नार्वे ब्रिटेन जैसे कई यूरोपीय देश भारत के आगे कहीं नहीं टिक पा रहे थे। राजीव दीक्षित ने कहा कि 1809 में ब्रिटेन की संसद में तत्कालीन प्रधान मंत्री ने अपने बयान में कहा था कि भारत से आने वाली हर चीज इतनी अच्छी होती है कि हमारे उद्योग उनका मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं और हमारे उद्योग धंधे नष्ट हो रहे हैं। तब ब्रिटेन की रानी जो दुनिया भर के देशों से अपने लिए बेहतरीन कपड़े मंगवाती थी, उसने भी भारत के कारीगरों द्वारा हाथ से बनाए कपड़ों को देखकर कहा था कि दुनिया के किसी देश में भारत जैसे कपड़े नहीं बनते। उस समय ब्रिटेन के राजा को भारत से भेजा गया एक शाल इतना पसंद आया था कि उसने यहाँ तक कह दिया था कि जब मैं मरूं तो यह शाल मेरे शव के पास रख दिया जाए, मैने जिंदगी में इतनी खूबसूरत शाल नहीं देखी।
राजीव दीक्षित ने कहा कि तब हमारे देश की आबादी 40 करोड थी, जिसमें से 4 करोड़ कारीगर थे जो हाथ से काम करते थे। उस समय भारत में मजदूरों को मिलने वाली मजदूरी की दर ब्रिटेन से दस गुना थी यानी अगर ब्रिटेन के किसी मजदूर को 10 रुपये प्रतिदिन मिलते थे तो भारत में मजदूरों को 100 रुपये प्रतिदिन मिलते थे। अंग्रेजों ने भारत में आते ही यहाँ की स्वदेशी व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया। उन्होंने स्वदेशी कारीगरों द्वारा बनाई जाने वाली चीजों पर कई तरह के कर लगा दिए। आज हमारे देश में कस्टम, एक्साईज, एंट्री टैक्स आदि के नाम से लिए जाने वाले कर अंग्रेजों की ही देन है। अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश के कई कारीगरों के हाथ के अंगूठे इसलिए काट दिए कि उन्होंने अंग्रजों के आगे झुकने से इंकार कर दिया था। उन्होंने कहा कि देश में तब 16 करोड़ किसान थे, हर किसान के पास 10 एकड़ का खेत था। ये ऑंकड़े 1881 में अंग्रेजों द्वारा कराई गई जनगणना के हैं। उस समय देश में एक भी किसान भूमिहीन नहीं था। इसके बाद अंग्रेजों ने 1894 में लैंड एक्विजिशन एक्ट लाकर किसानों की जमीनें छीन ली। किसानों को अपनी उपज का 90 प्रतिशत लगान के रूप में अंग्रेज सरकार को देना अनिवार्य कर दिया गया। जब इस अत्याचार को लेकर कुछ ब्रिटिश सांसदों ने ब्रिटेन की संसद में आवाज उठाई और कहा कि यह अत्याचार की पराकाष्टा है, तो तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान मंत्री ग्लैडिस्टन ने कहा कि जब तक हम भारत के किसानों का मनोबल नहीं तोड़ देते हम उन पर राज नहीं कर सकते।जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो हमारे देश में सुई से लेकर हवाई जहाज तक बाहर से आते थे। जबकि इसके 150 साल पहले हम पूरी दुनिया को हर तरह का सामान बेचते थे। अंग्रेजों के जाने के बाद सत्ता में बैठे लोगों ने स्वदेशी उद्योग धंधों को प्रोत्साहित करने की बात तो खूब की मगर संसद की पहली बैठक में ही स्वदेशी की भावना का गला घोट दिया गया। देश में विदेशी पूंजी लेकर आए वालों को प्रोत्साहित किया जाने लगा और देशी उद्योगपतियों को हर तरह से उपेक्षित किया जाने लगा। श्री दीक्षित ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में देश के 6 लाख 32 हजार लोगों ने अपनी जान कुर्बान की। आजादी के पहले तो एकमात्र ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में आई थी जबकि आज सैकड़ों बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत में अपने पैर जमा चुकी है। आजादी के बाद देश के किसानों से औद्योगिकरण के नाम से 5 लाख हैक्टेयर जमीन छीन ली गई। श्री दीक्षित ने कहा कि सरकार और देश के वित्त मंत्री हमेशा से ये झूठा दावा करते आए हैं कि विदेशी कंपिनयों के आने से देश में पूंजी निवेश बढ़ेगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इससे बड़ा झूठ और कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि हिन्दुस्तान लीवर इस देश में मात्र 32 लाख रुपये की पूंजी लेकर आई थी, मगर आज यह कंपनी 1800 से 2000 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाकर भारत से बाहर भेज रही है। ये तो सरकारी आँकड़ों की जानकारी है अगर इसकी गहराई में जाएं तो यह मुनाफा कई गुना ज्यादा होगा। श्री दीक्षित ने कहा कि कोलगेट ने मात्र 17 लाख रुपये की पूंजी से अपना कारोबार शुरु किया था, मगर आज यह सैकड़ों करोड़ रुपये का मुनाफा भारत से बाहर भेज रही है।
उन्होने कहा कि ये कंपनियाँ भारत आकर भारत की बैंकों से ही सस्ती ब्याज दरों पर ऋण लेकर, यहाँ के शेअर बाजार में अपना नाम दर्ज कराकर और अपने देश की जनता से ही पूंजी इकठ्टी कर अपना कारोबार फैलाती है। सरकार भी इन विदेशी कंपनियों के आगे नममस्तक हो जाती है और इनको बिजली, पानी, जमीन से लेकर उद्योग के लिए हर तरह की सुविधा मुहैया कराती है। जबकि अगर कोई भारतीय व्यक्ति उद्योग शुरु करना चाहे तो उसे कई साल तक सरकारी विभागों के चक्कर लगाना पड़ते हैं।श्री दीक्षित ने वित्त मंत्री द्वारा संसद में दिए जाने वाले बजट भाषण का हवाला देते हुए कहा कि देश में गृह उद्योग जिसमें एक आदमी भी अपने घर पर काम करके रोजगार चला रहा है, ऐसे 5 करोड़ 80 लाख उद्योग हैं, इन उद्योगों को देश में दिए जाने वाले कुल कर्ज का 2 प्रतिशत ही दिया जाता है। जबकि इन उद्योगों द्वारा देश के सकल उत्पादन में 35 प्रतिशत का योगदान दिया जाता है। इन उद्योगों को न तो सरकार से कोई ढूट मिलती है न सबसिडी। अगर इन उद्योगों को सरकार की ओर से प्रोत्साहन और ऋण दिया जाए तो इससे सीधे एक से दो करोड़ लोगों को रोजगार मिल सकता है। श्री दीक्षित ने कहा क सरकार और बैंक अपनी 80 प्रतिशत राशि विदेशी कंपनियों को ऋण के रूप में देते हैं। जबकि इस देश की बैंकों में 80 प्रतिशत राशि गरीब मजदूरों और किसानों द्वारा जमा की गई होती है।श्री दीक्षित ने कहा कि किसान, जो देश के लिए अन्न उपजाता है उसे 15 प्रतिशत ब्याज की दर से ऋण दिया जाता है जबकि कार खरीदेन वाले को 5 प्रतिशत की दर पर ऋण दिया जाता है। श्री दीक्षित ने वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा कि देश में मात्र 1 प्रतिशत लोग खादी पहनते हैं, इससे देश में 1 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। उन्होंने कहा कि कल्पना करें कि अगर देश के 100 प्रतिशत लोग खादी पहनने लग जाएँ तो देश में 65 करोड़ लोगों को रोजगार मिल सकता है। अगर हम तयकर लें कि हम अपने गाँव के मोची द्वारा बनाए जाने वाले जूते पहनेंगे तो देश के डेढ़ करोड़ मोचियों को काम मिल सकता है।क्षी दीक्षित ने कहा कि अगर हम एल्युमिनियम से बने कुकर (वैज्ञानिक शोधों से यह सिध्द हो चुका है कि एल्युमिनियम में बना खाना दूषित हो जाता है) की बजाय मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाएँ तो देश के 50 लाख कुम्हारों को काम मिल सकता है। मिट्टी के बरतन में बना खाना सबसे शुध्द होता है क्योंकि मिट्टी करोड़ों सालों से सूरज की रोशनी में तपती आ रही है और उसके अंदर तमाम खनिज और लवणों के साथ पौष्टिक तत्व होते हैं। श्री दीक्षित ने बताया कि देश के टीवीएस औद्योगिक समूह के परिवार में मिट्टी के बर्तनों में ही खाना बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि अगर हम अपने आसपास की छोटी छोटी चीजों से अपने आपको बदलने लगें तो हम कुछ ही सालों में देश का हुलिया बदल सकते हैं और हर दृष्टि से आतम निर्भर हो सकते हैं

अब्दुल्ला

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