अब्दुल्ला
चश्मा बड़ी गजब चीज़ है। आंखों में काला चश्मा लगाकर आप दुनिया को छुपी नजरों से देख लेते हैं और दुनिया की नजरें आपको नहीं देख पाती। लोग पता नहीं लगा पाते की आप असल में क्या और किधर देख रहे थे? आप छुपा क्या रहे है ? क्या आपको डर है आंखे कहीं सच न बोल दें? क्या नाक पर काला चश्मा चढ़ा कर हम आंखों को सच बयां करने से रोकते हैं ?
चश्मा चढ़ा कर आप समाज में सीना तानकर चल सकते हैं और पूरा मुंह छुपाने की जरूरत नहीं पड़ती। बस आंखे में दृश्य या अदृश्य चश्मा चढ़ा रहे। और जब धर्म का चश्मा चढ़ जाए तो फिर बात ही क्या है? धर्म के चश्मे पर बात करने से पहले क्यों न धर्म को थोड़ा बहुत समझ लिया जाए?
धर्म किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रिति, रिवाज़, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है। य: धारति सह धर्म:, अर्थात जिंदगी में जो धारण किया जाए वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है।
किसी समाज या देश की समस्याओं का समाधान कर्म-कौशल, व्यवस्था-परिवर्तन, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास, परिश्रम तथा निष्ठा से सम्भव है। आज के मनुष्य की रुचि अपने वर्तमान जीवन को सँवारने में अधिक है। उसका ध्यान 'भविष्योन्मुखी' न होकर वर्तमान में है। वह दिव्यताओं को अपनी ही धरती पर उतार लाने के प्रयास में लगा हुआ है।
मनु ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं:धृति क्षमा दमोस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः ।धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो , दसकं धर्म लक्षणम ॥ (मनु स्मृति)अर्थात धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं।
शास्त्रों में कहा गया है कि जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये, यही धर्म की कसौटी है।श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रूत्वा चैव अनुवर्त्यताम् ।आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषाम् न समाचरेत् ॥अर्थात धर्म का सर्वस्व है, सुनों और सुनकर उस पर चलो! स्वयं को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये।हिन्दू धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय, और दर्शन समेटे हुए है। हिन्दू एक फ़ारसी शब्द है। हिन्दू लोग अपने धर्म को सनातन धर्म या वैदिक धर्म भी कहते हैं।
ऋग्वेद में कई बार सप्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है, संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र मे मिलती है, दूसरा, कोई समुद्र या जलराशि।
ऋग्वेद की नदी स्तुति के अनुसार वे सात नदियाँ हैं सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता (झेलम), शुतुद्रि (सतलुज), विपाशा (व्यास), परुषिणी (रावी) और अस्किनी (चेनाब)। ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया।
हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनों कर्म भोग सकता है, और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं।1- वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं)2- शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं)3- शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं)4- स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)।हिंदू धर्म में ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य माना गया है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि ओम की ध्वनि पूरे ब्रह्मान्ड में गून्ज रही है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देती है। ब्रह्म की परिकल्पना वेदान्त दर्शन का केन्द्रीय स्तम्भ है, और हिन्दू धर्म की विश्व को अनुपम देन है।
श्रीमद भगवतगीता के अनुसार विश्व में नैतिक पतन होने पर भगवान समय-समय पर धरती पर अवतार लेते हैं। ईश्वर के अन्य नाम हैं : परमेश्वर, परमात्मा, विधाता, भगवान। इसी ईश्वर को मुस्लिम अरबी में अल्लाह, फ़ारसी में ख़ुदा, ईसाई अंग्रेज़ी में गॉड, और यहूदी इब्रानी में याह्वेह कहते हैं।
अद्वैत वेदान्त, भगवत गीता, वेद, उपनिषद्, आदि के मुताबिक सभी देवी-देवता एक ही परमेश्वर के विभिन्न रूप हैं। ईश्वर स्वयं ही ब्रह्म का रूप है। निराकार परमेश्वर की भक्ति करने के लिये भक्त अपने मन में भगवान को किसी प्रिय रूप में देखता है।“एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति” (ऋग्वेद)अर्थात एक ही परमसत्य को विद्वान कई नामों से बुलाते हैं।
योग, न्याय, वैशेषिक, अधिकांश शैव और वैष्णव मतों के अनुसार देवगण वो परालौकिक शक्तियां हैं जो ईश्वर के अधीन हैं मगर मानवों के भीतर मन पर शासन करती हैं।योग दर्शन के अनुसार-ईश्वर ही प्रजापति और इन्द्र जैसे देवताओं और अंगीरा जैसे ऋषियों के पिता और गुरु हैं।
मीमांसा के अनुसार-सभी देवी-देवता स्वतन्त्र सत्ता रखते हैं, और उनके उपर कोई एक ईश्वर नहीं है। इच्छित कर्म करने के लिये इनमें से एक या कई देवताओं को कर्मकाण्ड और पूजा द्वारा प्रसन्न करना ज़रूरी है। इस प्रकार का मत शुद्ध रूप से बहु-ईश्वरवादी कहा जा सकता है।
ज़्यादातर वैष्णव और शैव दर्शन पहले दो विचारों को सम्मिलित रूप से मानते हैं। जैसे, कृष्ण को परमेश्वर माना जाता है जिनके अधीन बाकी सभी देवी-देवता हैं, और साथ ही साथ, सभी देवी-देवताओं को कृष्ण का ही रूप माना जाता है। ये देवता रंग-बिरंगी हिन्दू संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।
वैदिक काल-वैदिक काल के मुख्य देव थे इन्द्र, अग्नि, सोम, वरुण, रूद्र, विष्णु, प्रजापति, सविता (पुरुष देव), और देवियाँ थीं सरस्वती, ऊषा, पृथ्वी, इत्यादि।बाद के हिन्दू धर्म में और देवी देवता आये इनमें से कई अवतार के रूप में आए जैसे राम, कृष्ण, हनुमान, गणेश, कार्तिकेय, सूर्य-चन्द्र और ग्रह, और देवियाँ जिनको माता की उपाधि दी जाती है जैसे दुर्गा, पार्वती, लक्ष्मी, शीतला, सीता, राधा, सन्तोषी, काली, इत्यादि। ये सभी देवता पुराणों मे उल्लिखित हैं, और उनकी कुल संख्या 33 करोड़ बतायी जाती है।
महादेव-पुराणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव साधारण देव नहीं, बल्कि महादेव हैं
गाय-हिन्दु धर्म में गाय को भी माता के रूप में पूजा जाता है। यह माना जाता है कि गाय में सम्पूर्ण 33 करोड़ देवी-देवता वास करते हैं।
आत्मा-हिन्दू धर्म के अनुसार हर मनुष्य में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन और अमर है। हिन्दू धर्म के मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़-पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। मानव जन्म में अपनी आज़ादी से किये गये कर्मों के मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। अच्छे कर्म करने पर आत्मा कुछ समय के लिये स्वर्ग जा सकती है, या कोई गन्धर्व बन सकती है, अथवा नव योनि में अच्छे कुलीन घर में जन्म ले सकती है। बुरे कर्म करने पर आत्मा को कुछ समय के लिये नरक जाना पड़ता है, जिसके बाद आत्मा निकृष्ट पशु-पक्षी योनि में जन्म लेती है। जन्म मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के लिये पा लेती है। मानव योनि ही अकेला ऐसा जन्म है जिसमें मानव के पाप और पुण्य दोनों कर्म अपने फल देते हैं और जिसमें मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
आज धर्म पर बाजार हावी है। सीधे कहा जाए तो धर्म का बाजारीकरण हो गया है आपको भगवान के दर्शन के लिए पैसे चुकाने पड़ेंगे। ये आपकों तय करना है कि कितने रुपये वाला दर्शन करना है। अर्थात प्रसिद्ध मंदिरों अगर आप पास से भगवान का दर्शन करना चाहते हैं तो उसके अलग रेट हैं और अगर दूर से गेट के पास से ही दर्शन कर लेना चाहते हैं तो उसके लिए कम पैसे में काम बन सकता है। आज ईश्वर का दर्शन रुपये-पैसों में तौला जाने लगा है।
हमारे देश में धर्मगुरुओं की लंबी फौज खड़ी हो गई है। सबका अपना अलग तुर्रा है। शंकराचार्य ने 4 पीठों की स्थापना की थी और हर पीठ में एक प्रमुख आचार्य अर्थात शंकराचार्य की नियुक्ति की थी। वर्षो से ये परम्परा चली आ रही थी लेकिन आज आपकों एक दर्जन शंकराचार्य मिल जाएंगे, उनके हाव-भाव देख कर आप हैरान रह जाएंगे। हर शंकराचार्य खुद को असली और दूसर शंकराचार्य को नकली बताता है।
धर्म के नाम पर सतसंग करने वाले बाबाओं का बोलबाला है। इनकी अरबों की संपत्ति है। करोड़ों की गाड़ियों का काफिला है। संयोग से एक ऐसे बाबा के दर्शन हुए जिनकी चरण पादुका(चप्पल) में हीरे लगे हुए थे। एक भक्त ने बड़े उत्साह से बताया की ये महाराज जी की चरण पादुका में 50 लाख के हीरे लगे है। उन्ही महाराज जी ने भक्तों को प्रवचन में ज्ञान दिया कि ‘माया-मोह से दूर रहकर साधु-संतों की संगत करने से ही इस संसार सागर मुक्ति मिल सकती है’। भक्त बेचारा माया-मोह से दूर रहे और दुनिया भर की सारी माया इन बाबाओं के आश्रम में लाकर दान कर दे ताकि ये धर्म का चश्मा पहले पाखंडी लोग ऐश कर सकें।
आज आपको किसी तीर्थ स्थल तक जाने की जरूरत नहीं है हर शहर, हर गली में आपको को धर्म का चश्मा पहले लुटेरे बाबा बैठे मिल जाएंगे। उनकी वेश-भूषा देखकर समाज का साधारण जनमानस ईश्वर के करीब जाने की लालसा में खिंचा चला आता है। और फिर बाबा उसे अपना चेला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
आजकल धर्म के साथ योग जोड़कर कुछ बाबाओं ने योग की मल्टीनेशनल कंपनी खड़ी कर ली है। प्रचीन काल से योग भारत की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है स्वंय श्रीकृष्ण को बहुत बड़ा योगी कहा जाता है। हमारे देश में महान योगी संत हुए है लेकिन योग का जैसा बाजारीकरण आज हो रहा है पहले कभी नहीं हुआ। योग से बीमारी का लाइलाज बीमारी तक का दावा करने में भी लोग नहीं हिचक रहे हैं। बाबा लोग योग को धंधा बनाकर एक-एक आसन को ऐसे बेच रहे हैं जैसे पीजा हट वाले तरह-तरह का पीजा बेचते हैं।
धर्म का चश्मा पहने इन बाबाओं से मिला भी कोई आसन काम नहीं इसके लिए आपको बकायदे पहले से बुकिंग करनी होगी। कुछ बाबाओं की मिलने की फीस 25 हजार रुपये है। पहले फीस जमा कराएं फीर समय लें बाबा मिलते हैं।
धन कुबेर बने बैठे इन बाबाओं के समाज के उत्थान में क्या योगदान है?, समाज के समस्याओं के दूर करने के लिए इन बाबाओं ने क्या प्रयास किए हैं?, धर्म ने नाम पर लोगों को बहकाने के अलावा देश में शांति सद्भाव बढ़ाने के लिए इन बाबाओं ने क्या किया? आज भारत की आबादी में 65% हिस्सा युवा वर्ग का है उनकों सही दिशा देने की इन बाबाओं की क्या योजना है। जिस भारत देश में ये बाबा पैदा हुए उसकी माठी के लिए इन्होंने आज तक क्या किया? ऐसे न जाने कितने सवाल है जिनके जवाब इन धर्म का चश्मा पहने बैठे इन बाबाओं के देना पड़ेगा?
धर्म का चश्मा पहले राजनीति में घुसने की जुगते में बैठे कुछ ढोंगी संतों को आम जनता सही वक्त पर आईन दिखा देगी और जिस दिन युवा पीड़ी इन बाबाओं के असली धंधे को समझ गई उस दिन इनके धर्म के चश्म को उतर कर फेंक देगी। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है सभी संत ऐसे नहीं है पर आज ढोंगी बाबाओं का बाजार ज्यादा गरम है हमारा उद्देश्य उन ढोंगी बाबाओं की तरफ इशारा करना था जिन्होंने धर्म का चश्मा पहन कर समाज के संसाधनों का दुरुपयोग किया है और आम जनमानस को ईश्वर प्राप्ति के सही मार्ग से भटकाया।
बुधवार, 7 अप्रैल 2010
कही आँखें सच न बोल दे
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