सोमवार, 5 अप्रैल 2010
ईसा मसीह की कबर कश्मीर में
अब्दुल्ला
एक परंपरा ये कहती है कि ईसा मसीह ने सूली से बचकर अपने बाकी दिन कश्मीर में गुजारे और इसी आस्था के कारण श्रीनगर में उनका एक मजार बना दिया गया जोकि विदेशी यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बन चुका है। श्रीनगर के पुराने शहर की एक इमारत को रौजाबल के नाम से जाना जाता है।यह शहर के उस इलाके में स्थित है जहाँ भारतीय सुरक्षा बल की गश्त बराबर जारी रहती है या फिर वह अपने ठिकानों से सर निकाले चौकसी करते हुए नजर आते हैं।इसके बावजूद वहाँ सुरक्षाकर्मियों को कभी-कभी चरमपंथियों से मुठभेड़ का सामना करना पड़ता है तो कभी पत्थर फेंकते बच्चों का। फिर भी सुरक्षा स्थिति में बेहतरी आई है और पर्यटक यहाँ लौट रहे हैंपिछली बार जब एक साल पहले हमने रौजाबल की तलाश की थी तो हमारे टैक्सी वाले को एक मस्जिद और दरगाह के कई चक्कर लगाने पड़े थे और काफी पूछने के बाद ही हमें वह जगह मिली थी।यह रौजा एक गली के नुक्कड़ पर है और पत्थर की बनी एक साधारण इमारत है। एक दरबान मुझे अंदर ले गया और उसने मुझे लकड़ी के बने कमरे को खास तौर से देखने के लिए कहा जो कि जालीनुमा जाफरी की तरह था।इन्हीं जालियों के बीच से मैंने एक कब्र देखी जोकि हरे रंग की चादर से ढकी हुई थी।'वो प्रोफेसर'इस बार जब में फिर से यहाँ आया तो यह बंद था। इसके दरवाजे पर ताला लगा था क्योंकि यहाँ काफी पर्यटक आने लगे थे। इसका कारण क्या हो सकता था। नए जमाने के ईसाइयों, उदारवादी मुसलमानों और दाविंची कोड के समर्थकों के मुताबिक भारत में आने वाले सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति का यहाँ शव रखा है।आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग यह मानते हैं कि यह नजारेथ के येशु यानी ईसा का मजार है।उनका मानना है कि सूली से बचकर ईसा मसीह 2000 साल पहले अपनी जिंदगी के बाकी दिन गुजारने कश्मीर चले आए थे। रियाज के परिवार वाले इस रौजे की देख-भाल करते हैं और वह नहीं मानते कि ईसा यहाँ दफन हैं।उसने कहा, 'ये कहानी स्थानीय दुकानदारों की फैलाई हुई है क्योंकि किसी प्रोफेसर ने कह दिया था कि यह कब्र ईसा मसीह की है। उन्होंने सोचा की यह उनके कारोबार के लिए काफी अच्छा होगा। पर्यटक आएँगे। आखिर इतने सालों की हिंसा के बाद।'
उसने ये भी कहा, 'और फिर ये हुआ कि लोनली प्लैनेट में इसके बारे में खबर प्रकाशित हुई और फिर ये हुआ कि बहुत सारे लोग यहाँ आने लगे।'उसने मेरी ओर खेद भरी नजरों से देखते हुए कहा, 'एक बार एक विदेशी यहाँ आया और मकबरे से एक टुकड़ा तोड़ कर अपने साथ ले गया।'कहानी सुनाते हुए उसने कहा, 'एक बार एक थका-हारा और मैला ऑस्ट्रेलियाई जोड़ा अपने हाथ में लोनली प्लेनेट का भारत के लिए नया ट्रैवेल गाइड लिए पहुँचा जिसमें ईशनिंदा पर कुछ आपत्तियों के साथ ईसा की मजार के बारे में लिखा गया था।''उन्होंने मुझे मजार के बाहर उनकी तस्वीर लेने के लिए कहा क्योंकि मजार बंद था। वे इस बात से ज्यादा परेशान नहीं हुए।'उनका कहना था कि उनके लिए ईसा का मजार भारत में उनकी यात्रा के दौरान उन स्थानों की सूची में शामिल था जिन्हें देखना उन्होंने अनिवार्य कर रखा था यानी अपनी मस्ट-विजिट लिस्ट में शामिल कर रखा था।बौद्ध सम्मेलन : श्रीनगर के उत्तर में पहाड़ों पर एक बौद्ध विहार के खंडहर हैं जिसका जिक्र अभी लोनली प्लेनेट में नहीं हो सका है। यह वह जगह है जहाँ हम पहले नहीं जा सके थे क्योंकि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया था कि वह इलाका चरमपंथियों से भरा हुआ है।लेकिन अब ऐसा लगता है कि वहाँ के चौकीदार बहुत सारे पर्यटकों के आने के लिए तैयार हैं क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी के 50 शब्द सीख लिए हैं और वे अपने छुपे हुए पुराने टेराकोटा टाइलों को बेचने का इरादा रखते हैं।उन्होंने मुझे बताया कि सन 80 में हुए महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध बौद्ध सम्मेलन में ईसा मसीह ने भाग लिया था। यहाँ तक कि उन्होंने वह जगह भी बताई कि ईसा मसीह उस सम्मेलन में कहाँ बैठे थे।ईसा मसीह के संदर्भ में ये कहानियाँ भारत में 19वीं शताब्दी से प्रचलित हैं। ये उन कोशिशों का नतीजा थीं जिसमें बुद्धिजीवियों में 19वीं सदी के दौरान बौद्ध और ईसाई धर्मों के बीच समानता को उजागर करने की कोशिश की गई थी। ऐसी ही इच्छा कुछ ईसाइयों की थी कि वे ईसा मसीह की कोई कहानी भारत से जोड़ सकें।ईसा मसीह के कुछ वर्षों के बारे में कुछ पता नहीं है कि वह 12 साल की आयु से लेकर 30 वर्ष की आयु तक कहाँ थे। कुछ लोगों का मानना है कि वह भारत में बौद्ध धर्म का ज्ञान प्राप्त कर रहे थे, लेकिन आम तौर पर इसे सही नहीं माना जाता है।
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aap kee rachna padhee hai