बुधवार, 21 अप्रैल 2010

सार समाचार

मामला सत्रह भारतीयों को सजाये मौत का
अब्दुल्ला
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में जिन 17 भारतीयों को मौत की सजा दी गई है, उन्हें राहत देने के लिए भारत ने अपील की तैयारी पूरी कर ली है। शारजाह के उच्च न्यायालय में 12 अप्रैल से पहले इस संबंध में अपील दायर की जा सकती है। वहां के कानून के मुताबिक, निचली अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के 2 सप्ताह के भीतर उच्च न्यायालय में अपील दायर होनी चाहिए। शारजाह की एक शरिया अदालत ने 29 मार्च को भारतीयों को सजा दी थी। सूत्रों के मुताबिक, अपने नागरिकों को बचाने के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय ने वहां के एक नामी वकील का चुनाव कर लिया है। इस बीच भारत में यूएई दूतावास ने सोमवार को एक बयान जारी किया। इसके मुताबिक वहां की सरकार ने इस मामले में मुकदमे के निष्पक्ष संचालन की गारंटी दी है। बयान में कहा गया कि मौत की सजा का मामला आगे की अपील पर निर्भर करेगा। यानी अपील के साथ साक्ष्यों और दलीलों की गुणवत्ता पर अब भारत के 17 नागरिकों का भविष्य तय होगा। दूतावास ने यह भी कहा है कि यूएई की न्यायिक प्रणाली के तहत मौत की सजा के मामले में अपील ही सब कुछ है और किसी भी पार्टी की ओर दखलंदाजी कतई स्वीकार्य नहीं की जाती है। दोषियों को निष्पक्ष ट्रायल की पूरी गारंटी है और वहां यह सुनिश्चित किया जाता है कि पूरा न्याय हो। इस बीच, भारत ने यूएई सरकार से भी संपर्क साधा है ताकि इस मामले को निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित हो। वैसे सूत्रों की मानें तो पाकिस्तानी नागरिक की हत्या के मामले में मौत की सजा पाए भारतीयों के खिलाफ वहां एक लाबी भी सक्रिय हो चुकी है। यही वजह है कि जेल में बंद भारतीयों से दिल्ली के नुमाइंदे लगातार संपर्क में हैं ताकि उनकी तरफ से सब कुछ स्पष्ट तरीके से मालूम होता रहे। विदेश मंत्रालय पहले ही साफ कर चुका है कि कानूनी लड़ाई का खर्चा वह ही वहन करेगा। यूएई में मुक्तिदूसरे मुल्कों के लिए मिसाल नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो : यूएई में मौत की सजा पाए भारतीयों को अगर छुड़वा लिया गया तो यह उनके लिए राहत ही नहीं बल्कि दूसरे मुल्कों में फंसे भारतीयों के लिए मिसाल भी होगी। इससे चीन, स्पेन और खाड़ी देशों में कानून के हत्थे चढ़े भारतीयों को भी राहत देने का मार्ग प्रशस्त होगा। कुछ माह पहले चीन में तकरीबन 21 भारतीयों को हीरा तस्करी के मामले में पकड़ा गया था। यह सभी जेल में हैं। उनके खिलाफ बीजिंग की अदालत कभी भी कड़ी सजा सुना सकती है। स्पेन की जेल में भी 30 से ज्यादा भारतीय जेल में हैं। वहीं, अरब देशों में अवैध वीजा मामले में कई भारतीय तमाम जेलों में बंद हैं। इनमें कई मामले ऐसे हैं, जिनमें अगर ठोस अपील हो तो भारतीयों को बचाया जा सकता है। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। इसीलिए यूएई में मौत की सजा से भारतीयों को बचाने के लिए विदेश मंत्रालय जी-जान से जुट गया है ताकि अन्य मामलों के लिए रास्ता बने।
कागजों में नियुक्ति कर दी शिक्षकों की
अब्दुल्ला
हरियाणा के शिक्षा विभाग अधिकारियों और कर्मचारियों ने कागजों में अतिथि अध्यापकों (गेस्ट टीचर्स) की नियुक्ति कर डाली। जिले के जिन विद्यालयों में गेस्ट टीचर्स की नियुक्ति दर्शाई गयी है, हकीकत में वह शिक्षक जिले में तैनात ही नहीं है। शिक्षा विभाग के इस गोरखधंधे का खुलासा सूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में हुआ है। हरियाणा जागरूक अध्यापक संघ ने 12 सदस्यों के माध्यम से गेस्ट टीचर्स की नियुक्तियों से संबंधित अलग-अलग सूचनाएं मांगी। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, धन्यौड़ा राजकीय उच्च विद्यालय में एक अध्यापक को 16 अक्टूबर, 2006 को गणित के गेस्ट टीचर्स के रूप में नियुक्त दर्शाया गया, जबकि वह एक निजी स्कूल में अध्यापक है। उसने स्वयं भी गेस्ट अध्यापक नियुक्त होने से इंकार किया है। इसी तरह ब्लाक एजुकेशन आफिसर (बीईओ-टू) द्वारा गेस्ट टीचर्स की नियुक्ति के बारे में दी जानकारियों में भी गोलमाल दिखता है। विभाग ने गेस्ट अध्यापक सूची में रौंला गांव में सामान्य वर्ग में अतिथि अध्यापक की नियुक्ति की है,जबकि सूचना अधिकार के तहत जुटाई गई जानकारी में पता चलता है कि एससी कोटे से गेस्ट अध्यापक की नियुक्ति हुई है, जो रौंला गांव का ही निवासी बताया गया है। गेस्ट फेकल्टी के तहत जो नियुक्तियां की जाती हैं, उसमें संबंधित स्कूल जिस गांव में पड़ता है वहां के निवासी को प्राथमिकता दी जाती है। इस गोलमाल में सब कुछ कागजों में हुआ और गांव की प्राथमिकता को भी दरकिनार किया गया।
शामलात जमीन पर अवैध कब्जा : अदालतों में लगभग 5035 केस विचाराधीन हैअब्दुल्ला
हरियाणा में लगभग 21,000 एकड़ शामलात जमीन पर अवैध कब्जा है और इन कब्जों को हटाने के लिए राज्य की अदालतों में लगभग 5035 केस विचाराधीन है। यह जानकारी हरियाणा सरकार ने हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई दौरान दी। हरियाणा सरकार द्वारा हाईकोर्ट में दिए गए रिकार्ड के अनुसार राज्य में 8,27,015 एकड़ शामलात जमीन है और इसमें से 21,109 एकड़ पर अतिक्रमण है। हाईकोर्ट के आदेश पर हरियाणा के सभी जिला प्रमुखों ने अपने-अपने जिले के शामलात जमीन व उस पर अतिक्रमण से संबंधी जानकारी सोमवार को हाईकोर्ट में दी। इसे हाईकोर्ट ने रिकार्ड पर रख लिया। रिकार्ड के अनुसार कुरूक्षेत्र जिला अतिक्रमण के मामले में नंबर वन पर है जहां पर 4,256 एकड़ शामलात जमीन पर लोगों ने अतिक्रमण किया हुआ है। इसके बाद पानीपत व कैथल क्रमश: दूसरे व तीसरे स्थान पर आते हैं, जहां पर क्रमश: 4,203 व 3,417 एकड़ शामलात जमीन पर अतिक्रमण है। पंचकूला 1798 एकड़ जमीन के साथ चौथे स्थान पर है। यमुनानगर में 1319 एकड़ व गुड़गांव में 705 एकड़ शामलात जमीन पर अतिक्रमण है। रोहतक में सबसे कम 86 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण है। हरियाणा सरकार ने यह जानकारी हाईकोर्ट के 21 जनवरी के आदेश पर कोर्ट रखी। कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए हरियाणा व पंजाब के मुख्य सचिव से दोनों राज्यों में शामलात जमीन और उन पर अतिक्रमण के बारे में हलफनामा देने के आदेश दिए थे। कोर्ट ने हलफनामे में यह जानकारी भी देने को कहा था हाईकोर्ट व जिला अदालतों में शामलात जमीन से जुडे़ कितने केस विचाराधीन हैं। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में दोनों राज्यों की मुख्य सचिवों को यह भी आदेश दिया कि अगर 5 अप्रैल तक मुख्य सचिवों की तरफ से कोई जवाब फाइल नहीं किया जाता तो मुख्य सचिव को सुनवाई के दौरान कोर्ट में में स्वयं पेश होकर जवाब देना पड़ेगा। हाईकोर्ट ने इस मामले में दोनों राज्यों के मुख्य सचिव को अगली सुनवाई से पहले हलफनामा देकर यह जानकारी देने को कहा था।
पशु तस्करी पंजाब के लिए एक बड़ी समस्या
अब्दुल्ला
बढ़ती पशु तस्करी पशु तस्करी पंजाब के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। पंजाब में बड़े जानवरों के मांस की बिक्री पर प्रतिबंध है। स्वाभाविक रूप से इससे यहां पशु अधिक उपलब्ध होते हैं और इसका लाभ पशु तस्कर उठाना चाहते हैं। इसे रोकने के लिए जब कुछ संगठनों द्वारा कोई प्रयास किया जाता है तो तस्कर उनके सदस्यों पर प्राणघातक हमले भी करते हैं। बठिंडा की मौड़ मंडी में जब बजरंग दल के लोगों ने तस्करों को पकड़ने का प्रयास किया तो उन्होंने फायरिंग कर दी। सौभाग्य से इस फायरिंग में बजरंग दल का कोई भी सदस्य घायल नहीं हुआ और एक तस्कर भी पकड़ लिया गया। तस्करों के कब्जे से 48 पशुओं को मुक्त कराया गया। पशु तस्करी का यह कोई पहला मामला नहीं है बल्कि आए दिन राज्य से पशुओं की तस्करी हो रही है। राज्य में एक ओर पशुओं की तस्करी हो रही है वहीं दूसरी ओर प्रदेश का दुग्ध उत्पादन भी घट रहा है। यह निस्संदेह गंभीर चिंता का विषय है। जब तक पशु दूध देता रहता है तब तक तो लोग जैसे-तैसे उसे रखते हैं और जैसे ही उसका दूध बंद हो जाता है या कम हो जाता है पशुपालक उसे बेचने की फिराक में लग जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पशु तस्कर अथवा उनके एजेंट राज्य में सक्रिय रहते हैं और वे पशुओं को सस्ते दामों पर खरीद कर पंजाब से बाहर ले जाते हैं। इन लोगों की हरकतों से जहां राज्य के लोगों की आस्था को चोट पहुंचती है वहीं प्रदेश को आर्थिक क्षति भी पहुंचती है। सरकार ने जल्द ही गऊ सेवा बोर्ड गठित करने का आश्वासन विधानसभा में दिया है जो तस्करी को हतोत्साहित करने की दिशा में काम करेगा किंतु अभी तक यह बोर्ड अस्तित्व में नहीं आया है। इसके अलावा सरकार तस्करी के आरोपियों की सजा तथा जुर्माना बढ़ाने के लिए भी कानूनी परामर्श ले रही है। अजब गजब है यह मामला अब्दुल्ला
रियायत कैसी जन समस्याओं का निपटारा मिल बैठक कर किया जाए तो सार्थक परिणाम निकलते हैं। यदि कोई व्यक्ति केवल अपने लाभ की ही चिंता करेगा तो समस्या सुलझने के बजाय और गंभीर हो जाएगी। हिसार के गांव ढंढूर में यही स्थिति उत्पन्न हो गई। गांव के कुछ परिवार जल संकट का सामना कर रहे थे और शेष उसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। जब इसका कारण जानने का प्रयास किया गया तो दो गुटों में शुरू हुआ विवाद खूनी संघर्ष में बदल गया। जलापूर्ति विभाग ने ढंढूर में पानी देने के लिए दो पाइप लाइन बिछाई हुई हैं। इसके बावजूद गांव के कुछ परिवारों को पानी नहीं मिल रहा था। यदि एक लाइन के वाल्व को बंद करके उसे अपनी ओर मोड़ लिया जाएगा तो उससे जुड़े परिवार पानी के लिए मोहताज तो होंगे ही। परेशानी का कारण जानने के लिए पहले अपने स्तर पर जांच करने गए दो लोगों ने कोई अपराध तो किया नहीं था। उनके साथ दु‌र्व्यवहार, एक युवक पर मिट्टी का तेल डालकर जिंदा जलाने का प्रयास और मोटरसाइकिल भी फूंक देना कहां तक सही है। सरकारी सुविधा से छेड़छाड़ या उसमें बाधा उत्पन्न करना अपराध है। इस करतूत में संलिप्त लोगों ने कानून को अपने हाथ कैसे ले लिया। पाइप लाइन के साथ छेड़खानी क्यों की गई। विभाग द्वारा बिछाई लाइन से केवल उन्हें ही पानी लेने का अधिकार नहीं है। जाहिर है कि कुछ परिवारों के लिए यह संकट कृत्रिम रूप ये पैदा किया गया। यानी कुछ लोग नहीं चाहते थे कि सभी ग्रामीणों को पानी मिले। प्राय: बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाया जाता है कि सब कुछ निपटने के बाद पुलिस मौके पर पहंुचती है। यह आश्चर्यजनक है कि ग्रामीणों द्वारा सूचना देने के बावजूद पुलिस समय पर मौके पर नहीं पहुंची। यही नहीं, हमलावर पुलिस की मौजूदगी में ग्रामीणों को पीटते रहे। हस्तक्षेप करके उन्हें रोका क्यों नहीं गया। पुलिस वालों की उदासीनता के कारण ही हमलावरों का दुस्साहस बढ़ा। पुलिस ने आठ लोगों पर हत्या प्रयास का मामला दर्ज कर लिया है। इनमें से किसी के साथ रियायत नहीं बरती जाए। जलापूर्ति विभाग को पाइप लाइन का वाल्व बंद करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए। चाहे कोई किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा क्यों न हो। राजनीतिक पार्टी के बल पर आम जन के साथ दु‌र्व्यवहार और जानलेवा हमला करना शक्ति का दुरुपयोग है।
बाँट दिया हिन्दू मुस्लिम खेमों में
अब्दुल्ला
दिल्ली से बहादुर शाह जफर, कानपुर से नाना राव पेशवा तथा तात्या टोपे, लखनऊ से बेगम हजरत महल, झाँसी से रानी लक्ष्मी बाई, इलाहाबाद से लियाकत अली, जगदीशपुर से कुवर सिंह, बरेली से खान बहादुर खाँ, फैजाबाद से मौलवी अहमद उल्ला तथा फतेहपुर से अजीमुल्ला। ये है भारत माँ के वे राष्ट्र भक्त जिन्होंने जाति-धर्म-लिंग से परे जाकर वर्ष 1857 के क्रान्तिकारी उद्घोष में फिरंगियों के छक्के छुड़ा दिये थे। उक्त स्वतन्त्रता समर को अंग्रेजों ने बहुत गम्भीरता से लेते हुए अपना चिन्तन प्रारम्भ किया। उन्हे समझते देर न लगी यदि हिन्दू-मुस्लिम एकता को न तोड़ा गया तो निश्चित ही आगे आने वाला समय उनके लिए मुश्किलों भरा होगा। फूट डालो और राज करो की नीति के तहत वायसराय लार्ड मेयो ने एक समिति बनायी जिसका कार्य उस समय के भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी सर विलियम विल्सन हंटर को सौंपा। जिसकी रिपोर्ट द इंडियन मुस्लिम के नाम से वर्ष 1871 में प्रकाशित हुई। बड़ी चालाकी से अंग्रेजो की पूर्व योजना के अनुरूप हंटर ने उनको बदतर हालात में पहुँचाने की जिम्मेदारी साम्राज्यवादी शासन तथा हिन्दुओं दोनों पर डाल दी तथा शैक्षिक रूप से मुसलमानों के पिछड़ने की जिम्मेदारी सीधे हिन्दुओं पर डाल वे भारतीय मुस्लिम तुष्टिकरण के जनक बन गये। इसके बाद सन् 1888 में सर सैय्यद अहमद खाँ ने एंग्लो-मुस्लिम डिफेंस एशोसिएशन की स्थापना की जो अंग्रेजों की योजना का हिस्सा था। जिसके द्वारा उन्हे हिन्दू-मुस्लिम एकता के स्पष्ट विभाजन की पहली राजनैतिक सफलता प्राप्त हुई। लार्ड एल्गिन द्वितीय (1894-99) ने भारत को तलवार के बल पर विजित किया गया है। और तलवार के बल पर ही इसकी रक्षा की जायेगी कहकर मुस्लिम समाज को भारत के शासक के रूप में इंगित कर उपरोक्त दरार को बढ़ाने का कार्य किया। धीरे-धीरे उक्त दरार 30 दिसम्बर, 1906 को एक चौड़ी खाई के रूप में नजर आई जब अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना तथा 22 मार्च, 1940 को अपने लाहौर अधिवेशन में मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की मॉग रखी।वर्तमान में 2005 में गठित सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी काफी कुछ हंटर कमेटी की ही तरह है। सच्चर कमेटी में भी हिन्दू तथा मुसलमानों को प्रतिस्पर्धी समाज के रूप में चित्रित किया गया। उक्त रिपोर्ट में न्यायपालिका सेना, संसद, बैंक व्यापार,रोटी तथा रोजगार के साधनों को भी हिन्दू तथा मुस्लिम खेमों में बाँट दिया। आज भले ही दिखाई न पड़ रहा हो पर निश्चित ही आगे आने वाला समय हंटर कमेटी की ही तरह यह हिन्दू तथा मुसलमानों की बीच की खाई को और चौड़ा करेगी तथा देश के उन सत्ता प्रतिष्ठानों को और अधिक सशक्त करेगी जो देश में मुसलमानों के शुभचिन्तक बताते है तथा झूठे ही धर्म निरपेक्षता के ठेकेदार बनते हैं, जिन्होने अपने स्वार्थों के चलते देश को कई नाम दिये तथा उन्होने राष्ट्र को खण्ड-खण्ड करने में किंचित मात्र भी हिचक का अनुभव नहीं किया, जिन्होने हिन्दू तथा मुस्लिम समाज को विभक्त कर अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक की पहचान दी। इनके ही द्वारा मजहबी तुष्टीकरण का जन्म हुआ, इन्ही तथाकथित सेकुलरवादियों के चक्कर में देश तथा समाज में कुन्ठा, क्षोभ, भय, घुटन आदि का भयावह वातावरण तैयार हुआ।प्रश्न यह उठता है आज देश ऐसे मार्ग पर कैसे खड़ा हुआ जहाँ से उसके लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर प्रश्न चिन्ह लग गया। भारत की आजादी के बाद देश पर शासन की बागडोर आयी कांग्रेस पार्टी के पास जिन्होने बड़ी ईमानदारी से अंग्रेजो की परम्परा फूट डालो और राज करो की नीति को आगे बढ़ाया। उन्होने धर्म निरपेक्षता की आड़ में मुसलमानों के गम्भीर अपराधों पर पर्दा डाला, उनके मजहबी कानून अलग रखे, यहाँ तक कि उनसे परिवार नियोजन तक के लिए भी नहीं कहा गया, उनको आधुनिक शिक्षा व्यवस्था से जुड़ने के लिये नहीं कहा सिर्फ इस भय से कहीं उनका मुस्लिम वोट बैंक प्रभावित न हो जाये। उन्होने राष्ट्रवादी मुसलमानों की आवाज दबाकर कट्टर मजहबी मुसलमानों को बढ़ावा दिया।काँग्रेस पार्टी ने अपने स्वार्थ सिद्ध के कारण मुस्लिम समाज को धीर-धीरे इतने गहरे अंधेरे कुए में डाल दिया उन्हे लगने लगा इसी घुटन भरे अंधेरे में हमारा तथा हमारे समाज का भविष्य सुरक्षित है उन्हे सच्चाई की किरण से भय लगने लगा वे समझने लगे यह किरण हमें तथा हमारे समाज को जला कर राख कर देगी।उन्हें राष्ट्र तथा राष्ट्रवादी बातों से डर लगने लगा। उन्हें लगने लगा कि उनका हित बहुपत्नी विवाह, मजहबी तालीम तथा देश में जनसंख्या बढ़ोत्तरी में ही सुरक्षित है। यदि हम शैक्षिक स्तर पर इनका विश्लेषण करे तो पायेगी देश के प्रमुख कॉलेजों में अन्डर ग्रेजुएटस 4 प्रतिशत,पोस्ट ग्रेजुएट्स 2 प्रतिशत, आईआईटी में 3।3 प्रतिशत तथा आईआईएम में 1.3 प्रतिशत मुस्लिमों की मौजूदगी है, यदि सरकारी नौकरी में देखे वहाँ भी इनकी स्थिति संतोषजनक नहीं है, भारतीय विदेश सेवा में 1.8 प्रतिशत, भारतीय पुलिस सेवा में 4 प्रतिशत, भारतीय प्रशासनिक सेवा में 3 प्रतिशत सहित शिक्षा, गृह, स्वास्थ विभागों सहित कही भी इनकी स्थिति अनुपातिक दृष्टि से ठीक नहीं है उपरोक्त कुछ आँकड़े प्रदर्शित कर रहे है मुस्लिम समाज अन्य की अपेक्षा अधिक पिछड़ा है। यदि हम अपराध और जेलों में बंद मुस्लिमों के आँकड़े छोड़ दें तो हर स्थान पर उनकी उपस्थित काफी कम है। वे शैक्षिक स्तर पर अन्य की अपेक्षा काफी पीछे है। इसकी मुख्य वजह राजनीति क्षेत्र का वह वर्ग है जो बताता तो है वे उनके शुभचिन्तक है परन्तु वास्तव में वे सिर्फ उन्हे वोट बैंक के रूप मे ही देखते हैं। उसके अलावा उनके मजहबी धर्म गुरूओं ने भी उनका काफी नुकसान किया जिन्होने अपने समाज को आधुनिक विकास की सुनहरी किरण से वंचित रखा। अन्त में वे स्वयँ जिन्होने कभी अपने आप राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ने का प्रयास ही नहीं किया यदि वे उपरोक्त से जुडे़ होते तो उसके हर प्रकार के लाभ में भी उनकी प्राकृतिक हिस्सेदारी होती।राष्ट्र का सत्ता प्रतिष्ठान कभी भी मुस्लिम समस्याओं के प्रति ईमानदार नहीं रहा। हमेशा उनकी समस्याओं को वोटो के तराजू में रख तौला गया जहाँ वोटो का पलड़ा समस्याओं से भारी पड़ा अतः देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनेताओ ने उनकी वृक्ष रूपी समस्याओं के मूल में न जाना बेहतर समझा तथा शाखाओं तथा पत्तों को रंग रोगन लगा बनावटी हरा भरा बनाये रहे। हंटर समिति से हमें आशा भी नहीं थी कि वे मुसलमानों के उत्थान हेतु कोई प्रभावी कदम उठायेंगे परन्तु देश का एक प्रमुख राजनैतिक दल अपनी सत्ता को आगे सुनिश्चित करने करने के लिए ऐसा कुछ करेगा जिससे देश की राजव्यवस्था का भविष्य ही दाँव पर लग जायेगी तथा आगे आने वाले समय में लोकतान्त्रिक राजव्यवस्था का आधार सेकुलर न होकर मजहबी होने का तर्क पैदा हो।हंटर समिति तथा सच्चर समिति में तीन समानतायें दिखाई देती है। प्रथम् तो यह दोनो में भूट डालो और राज करो की दूरगामी योजना है, द्वितीय दोनों में धार्मिक विद्वेष बढ़ाने का प्रयास तथा तृतीय दोनों समितियों में मुस्लिमों के प्रति ईमानदार सोच का अभाव। देश की आबादी का लगभग 14 प्रतिशत मुस्लिम है। जिनको दरकिनार कर राष्ट्र के चहुमुखी विकास एवं भारत को परम वैभव प्राप्त कराना बेमानी है। अगर मुसलमान खुद अपनी समस्याओं के हल के लिए आगे नहीं आए तो सत्ता में बैठे लोग मुस्लिम नेताओं के क्षुद्र स्वार्थ सिध्द करके मुस्लिमों का राजनीतिक और धार्मिक शोषण करते रहेंगे

यौन और मानसिक शोषण में पिसता बचपन
हमारे समाज का ताना बाना वयस्कों, खासकर मर्दों की सुख-सुविधाओं, जरुरतों, रुचियों और अधिकारों को ध्यान में रखकर बना है। इसी के इर्द गिर्द घूमती है, हमारी राजनीति, कानून, पढ़ाई, चिकित्सा और यहां तक कि आमदनी और स्रोतों के बंटवारे भी। स्वाभाविक तौर पर न तो हम बच्चों के अधिकारों के बारे में जानना चाहते हैं और न ही उनकी सुरक्षा और सम्मान के बारे में पर्याप्त उपक्रम करते हैं। हां उन्हें नासमझ, कमजोर, लाचार आदि मानकर करुणा या दया का भाव जरुर रखते हैं। आवागमन के साधनों, वाहनों, सार्वजनिक शौचालयों, रेस्टोरेन्टों, सभागृहों, सड़कों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और यहां तक कि स्कूलों व अस्पतालों, का निर्माण बच्चों की सुविधा और सुरक्षाओं को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता क्योंकि हम बच्चों का अपना कोई वजूद नहीं समझते।फिर से हमारा सिर शर्म से झुका देने वाली गंभीर जानकारी, एक सरकारी रिपोर्ट के माध्यम से जग जाहिर हुई है। दुर्भाग्य से मीडिया के लिए यह कोई बड़ी खबर नहीं बनी, किंतु बच्चों के यौन उत्पीड़न के बारे में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट हमारे आर्थिक विकास तथा सभ्यता व संस्कृति की डींगों की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है। नारी रक्षा की महान परंपराओं की दुहाई देने वाले भारत में हर 155वें मिनट में किसी न किसी नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म होता है। सरकारी रिपोर्ट यह भी बता रही है कि दुनिया में सबसे ज्यादा यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चे हमारे देश में ही बसते हैं।बचपन के प्रति उदासीनता भरी सामाजिक मानसिकता, गैर जिम्मेदाराना रवैया तथा चारों ओर पसरी संवेदनशून्यता इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति के बडे़ कारण हैं। इसलिए यह लाजमी है कि बच्चों के प्रति व्याप्त किसी भी प्रकार की हिंसा, असुरक्षा व उनकी जिन्दगी के जोखिमों को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये साथ ही सर्वांगीण समाधान भी ढूंढा जाय।विगत 1 मई को लोकसभा में जब सरकार इस रिपोर्ट का जिक्र कर रही थी तब संसद भवन से चंद मील दूर चौथी कक्षा में पढ़ने वाली 9 साल की एक बच्ची के साथ उसी का योग प्रिशक्षक मुंह काला करने में जुटा था। इसी प्रकार के तीन मामले दिल्ली पुलिस ने दर्ज किये। राजधानी के स्वरुप नगर इलाके में पांच वर्षीय बालक के साथ उसके पड़ोसी ने जबर्दस्ती की, जब वह अपने घर के बाहर नगर निगम के पार्क में खेल रहा था। इसी क्षेत्र में एक चौदह साल की बच्ची के साथ उसी के 24 वर्षीय पड़ोसी ने बलात्कार किया। तीसरी घटना तो और भी ज्यादा घृणित है जब लोगों की जान माल और इज्जत की सुरक्षा में तैनात एक 40 वर्षीय पुलिसकर्मी ने प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रियों, न्यायाधीशों आदि के घरों से चंद कदमों की दूरी पर तुगलक रोड पर एक बच्ची के साथ दिन दहाड़े मुंह काला किया। रोज ब रोज घटने वाले ऐसे शर्मनाक हादसों की कोई कमी नहीं है। जब यह स्थिति दिल्ली की है तो देश के दूर दराज इलाकों में तो हमारे बच्चे कितनी असुरक्षापूर्ण जिन्दगी जी रहे हैं, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।हर रोज कहीं न कहीं से स्कूल, पड़ोस, अस्पतालों, मनोरंजन केन्द्रों, धर्मस्थलों, पुलिस अथवा दूसरे सरकारी महकमों द्वारा, अपने कोमल शरीर, पवित्र आत्मा और निष्कलंक सम्मान को मिट्टी में मिलाकर, खून का घूंट पीकर या सिसकते सुबकते अनगिनत बच्चे घर लौटते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनको यह भी नसीब नहीं है कि वे जीवित लौट सकें। फैक्ट्रियों, खदानों, ईंट के भट्ठों में कोमल अंग गलाते-गलाते कभी नि:शब्द, कभी करुण क्रंदन करते वहीं अपना दम तोड़ने के लिए अभिशप्त हैं। बहुत से कुपोषण, भूख और बीमारी की वजह से मौत के मुंह में पहुंच जाते हैं। कईयों को सड़कों पर ही ट्रक, बसें, कारें कुचल डालती हैं, तो दूसरे कई खटारा बसों या नशाखोर अथवा नौसिखिए ड्राइवरों की कृपा से दुर्घटनाओं में चल बसते हैं। स्पष्ट तौर पर हमारे समाज में बच्चों की हिफाजत करने के बोध, तैयारी और ईमानदार कोशिशों का घोर अभाव है।कथित किशोर सुधारगृहों की भी पूरी दुर्गति है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे गृहों के शत प्रतिशत बच्चे उसे बच्चों की जेल ही मानते है। वहां भी आधे बच्चे वयस्कों द्वारा होने वाली किसी न किसी प्रकार की हिंसा के शिकार होकर दीवारें तक फांदकर भागने के लिए विवश हैं। वहां के 80 प्रतिशत कर्मचारियों और अधिकारियों को बाल अधिकारों की कभी कोई जानकारी ही नही दी गई। नतीजा साफ है कि दूर दराज की बात छोड़िये देश की राजधानी दिल्ली में ही पिछले 10 महीनों में सरकार द्वारा चलाये जा रहे इन कथित सुधारगृहों में कम से कम 12 बच्चों की मौत हो गई। इससे पहले दो वर्षों में क्रमश: 16 और 21 बच्चे मौत का शिकार हुए थे। बाल श्रम को रोकने के लिए नियुक्त किये गये श्रम निरीक्षकों और अफसरों की बच्चों के प्रति संवेदनशीलता व उनके अधिकारों और सम्मान को ध्यान में रखते हुए पूछताछ करने के तरीकों पर कोई प्रशिक्षण हमारे देश में नहीं होता। पुलिस की हालत तो इससे भी बुरी है, किसी भी जुल्म से पीड़ित बच्चों से पुलिसिया पूछताछ का तरीका निहायत ही भद्दा, अपमानजनक और अक्सर बचपन विरोधी होता है। सिपाहियों और थानेदारों को इस तरह बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करना सिखाने के लिए कोई सरकारी प्रशिक्षण नहीं होता। दुर्भाग्य से न्यायालयों तक की भी यही स्थिति है।नाम सोनिया. उम्र 10 साल. लाल गाउन में लिपटी वह अपने मेकअप रूप में मेकअप कर रही है. होठों पर सुर्ख लाली. गालों पर सुर्खी और भी ऐसे ही न जाने कौन-कौन से रंग रोगन उसके चेहरे पर पुत रहे हैं. वह अपनी उम्र से काफी आगे धकेल दी गयी लगती है. ऐसा क्यों किया जा रहा है उसके साथ? वह मुंबई एक टैलैण्ट हण्ट शो में भाग लेने पहुंची है. शो में बेहतर प्रदर्शन के लिए वह केवल मेक-अप पर ही ध्यान नहीं देती. वह रोज घण्टो रियाज करती है. उसे हमेशा यह चिंता रहती है कि रियाज और लुक दोनों ही मामलों में उसे आगे रहना है. सोनिया का भाई भारत भूषण अपनी छोटी बहन की मेहनत से बहुत खुश है. भूषण को उम्मीद है कि एक बार उसकी बहन स्टार बन गयी तो सारी दुनिया उसके कदमों में होगी.सोनिया और भूषण अकेले बच्चे नहीं है जो इस तरह के ख्वाबों के साथ जी रहे हैं. देश का 30 करोड़ बच्चे और किशोर इस सपने में उसके साझीदार है जिनकी उम्र 15 साल से कम है. टीवी के रियलिटी और डांस शो ने बच्चों को सपनों से भर दिया है. छोटी उम्र में खोखली ख्वाहिंशों का अंतहीन सिलसिला. इसके लिए जरूरत से ज्यादा समय वे सिंगिंग, डांसिग और टैलैण्ट हण्ट शो के नाम पर जिन्दगी निछावर कर रहे हैं. टीवी कंपनियां इसे टैलेण्ट हण्ट शो या कला प्रदर्शन का जरिया इसलिए बनाने में लगी है क्योंकि यह 180 करोड़ का विज्ञापन बाजार है और सालाना 20 प्रतिशत की दर से बच्चों का यह बाजार बढ़ रहा है.पांच मिनट की एक परफार्मेंश के लिए बच्चों को हफ्तों दिन-रात कड़ी मेहनत करनी होती है. बच्चे पढ़ाई-लिखाई तो छोड़ते ही हैं बचपन से भी मरहूम हो जाते हैं. मनोविद कहते हैं कि अच्छी तैयारी के बाद जब बच्चा हारता है तो वह गहरे अवसाद में चला जाता है जिसे उस अवसाद से निकालना बहुत मुश्किल होता है. इसका असर उसके पूरे जीवन पर होता है. बाजार द्वारा शायद यह बच्चों का व्यवस्थित शोषण है. इसके खिलाफ आवाज उठाने की बात कौन करे मां-बाप और अध्यापक भी इस लालच में बच्चों पर दबाल डालते हैं कि अगर वह कहीं पहुंचता है इसी बहाने उनका भी थोड़ा नाम हो जाता है .ऐसे में बच्चों को नचाने से लेकर दौड़ाने तक का हर काम होगा ही. विज्ञापनों और बाजार का प्रभाव ऐसा भीषण है कि आज हर मां-बाप अपने बच्चे को टैलेण्ट हण्ट शो का हिस्सा बनाना चाहता है. बाजार के प्रभाव में जो मां-बाप हैं वे अपने बच्चे का एकेडिमक कैरियर वगैरह नहीं चाहते. वे यही चाहते हैं या तो बच्चा क्रिकेट खेले नहीं तो फिर नाचे-गाये. यह समझना भूल होगी कि बच्चे अपनी मर्जी से इन टैलेण्ट शो में हिस्सा ले रहे हैं. ज्यादातर केसों में मां-बाप के दबाव में बच्चे टैलैण्ट हण्ट शो का हिस्सा बनते हैं. बच्चों के जरिए मां-बाप भी सुपरस्टार के मां-बाप का सुख भोगना चाहते हैं.यौन शोषण के साथ ही इस मानसिक शोषण को क्योंकर नजरअंदाज कर दिया जाता है? शायद इसलिए कि अपने बच्चों के द्वारा हम अपने नामची होने का सुख भोग सकेंगें.हमारा समाज और सरकार जब तक बच्चों की कही-अनकही जरुरतों, उनके हकों तथा उनकी शारीरिक या मानसिक उम्र का ख्याल रखते हुए उनको विशेष सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराता, बच्चों से संबंधित कानूनों, न्यायालयों के निर्देशों, योजनाओं आदि के क्रियान्वयन के लिए नियुक्त किये गये व्यक्तियों को कानूनी तौर पर जवाबदेह नहीं ठहराता, जब तक हम बच्चों से दोस्ताना व्यवहार की एक संस्कृति विकसित नहीं कर लेते और जब तक हम उनकी हिफाजत के लिए एक व्यापक सामाजिक व मानसिक सुरक्षा कवच निर्मित नही करते, तब तक इस तरह के बचपन विरोधी गम्भीर अपराधों को महज हादसा या रोजमर्रा की घटनायें ही माना जाता रहेगा. कभी न्याय अथवा राहत में देरी तो कभी चन्द लोगों की दरिन्दगी के बहाने बनाकर आखिर कब तक, हम हमारे बच्चों को मरने, जलने, अपाहिज होने और बलात्कार व हिंसा का शिकार होने के लिए अभिशप्त रखेंगे?बचपन के प्रति उदासीनता भरी सामाजिक मानसिकता, गैर जिम्मेदाराना रवैया तथा चारों ओर पसरी संवेदनशून्यता इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति के बडे़ कारण हैं। इसलिए यह लाजमी है कि बच्चों के प्रति व्याप्त किसी भी प्रकार की हिंसा, असुरक्षा व उनकी जिन्दगी के जोखिमों को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये साथ ही सर्वांगीण समाधान भी ढूंढा जाय।मनोविद कहते हैं कि इस तरह बच्चों का दबाव में रहना और कम उम्र में कैरियर की बातें सोचना उन्हें भावनात्मक रूप से कमजोर कर देता है. इतना दबाव तो शायद कोअब इस तरह के कानून बनाने की बात हो रही है कि बच्चों को खेत में काम करने से रोका जाए. घर में काम करने से रोका जाए. होटल और अन्य श्रमशोषण स्थानों के बारे में कानून बने और बच्चों का बचपन वापस लौटे यह तो समझ में आता है लेकिन इस तरह के पागलपन वाली परिभाषाओं का क्या मतलब है? क्या अब हमें क्या खाना चाहिए, कैसे सोना चाहिए, अपने बच्चों को कैसे पालना चाहिए, उन्हें क्या पढ़ना चाहिए और क्या सीखना चाहिए यह सब कानून से तय होगा? ऐसे तो वह बचपन ही मर जाएगा जिसकी नैसर्गिकता के कारण ही वह बचपन है।

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