-अनिल अनूप
दुनिया की महाशक्ति अमरीका की स्थिति आज पाकिस्तान जैसे पिद्दी-से देश के आगे मजबूर जैसी नजर आ रही है। कल तक पाकिस्तान को मोहरे के रूप में इस्तेमाल करता रहा अमरीका आज उसी का मोहर बनकर रह गया है। पाकिस्तान आज उसे नचा रहा है, अपने अनुसार चला रहा है, सच्चाइयों को झुठला अपनी हां-में-हां मिलाने को मजबूर कर रहा है। ...और अमरीका को यह सब करना प़ड रहा है। फिलहाल उसे इससे निजात पाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है। अमरीका ने सोवियत संघ के विघटन से पूर्व तक रूस-भारत गठजो़ड के खिलाफ पाकिस्तान का खुलकर इस्तेमाल किया। उसे खुलकर आर्थिक और सैन्य सहायता मुहैया कराई। यहां तक कि पाकिस्तान को परमाणु संपन्न देश बनाने में भी चोरी-छिपे मदद की। रूस और भारत के खिलाफ कई आतंकी संगठनों को पनपाया, लेकिन 9/11 के हमले ने उसकी आंखें खोल दी। वह छद्म रूप से अन्य देशों के खिलाफ जिस आतंकवाद के जरिए जंग छे़डे हुए था, अब उसे उसी से रू-ब-रू होना प़ड रहा है। करीब एक दशक से अमरीका और नाटो अफगानिस्तान फंसे हुए हैं। वो तालिबान और अल-कायदा से लोहा ले रहा है, लेकिन सफलता की किरण दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। अमरीका की इस मुहिम की नाकामयाबी पाकिस्तान, खास तौर पर उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना प्रमुख हैं। वे दो-तरफा रणनीति अपनाए हुए हैं।
दिखावे तौर पर वह अमरीका और नाटो का मददगार है, मगर अंदरूनी रूप से तालिबान और आतंकी संगठनों को पनाह दिए हुए है। उन्हें हथियार, धन और अन्य सुविधाएं मुहैया करा रहा है। अमरीका भी इस बात से अनभिज्ञ नहीं है। नाटो देशों की खुफिया एजेंसियां आईएसआई-सेना-तालिबान गठबंधन का बार-बार खुलासा करती रही हैं। अमरीका कई बार इन तथ्यों को क़डाई से पाकिस्तान के साथ उठा भी चुका है। मगर पाकिस्तान के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। अमरीका जैसी महाशक्ति की चेतावनियों और धमकियों को पाकिस्तान जैसा देश यों ही नजरअंदाज नहीं कर सकता, इसके उसकी पीछे मजबूत रणनीति है। पाकिस्तान जानता है कि अफगानिस्तान जंग उसके बिना नहीं जीता जा सकता। वह अमरीका और नाटो की जरूरत है। अफगानिस्तान में नाटो सैनिकों को लाइफ लाइन पाकिस्तान से जु़डी है। उसकी 80 फीसदी सप्लाई पाकिस्तान के रास्ते होती है। पाकिस्तान ने हाल ही अपनी हैसियत का अहसास अमरीका और नाटो करा भी दिया। उसके क्षेत्र में घुसकर नाटो हेलिकॉप्टरों के हमले के विरोध में पाकिस्तान ने नाटो की सप्लाई लाइन रोक दी। सप्ताहभर में ही अमरीका और नाटो ने घुटने टेक दिए और पाकिस्तान से माफी मांगनी प़ड गई। अमरीका, पाकिस्तान के ऎसे जाल में फंसा है कि उसे उसकी हर जायज-नाजायज मांगों के आगे घुटने टेकने प़ड़ रहे हैं। तालिबान और आतंकियों के सफाए के नाम पर पाकिस्तान ने अमरीका से जमकर धन और हथियार वसूले हैं। कई परियोजनाएं मंजूर कराई हैं। बाढ़ पीç़डतों के नाम पर अमरीका के जरिए अनाप-शनाप धन जमा किया है। सुरक्षा रणनीतिक करार के लिए दबाव बनाए हुए है। इस संबंध में पाक दल वाशिंगटन में जमा हुआ है। कश्मीर मामले पर भारत पर दबाव बनाने के लिए अमरीका को मजबूर कर रहा है। उसमें भी बहाना यही बनाया जा रहा है कि इस मसले का हल हुए बिना आतंकवाद समाप्त होना मुमकिन नहीं है। पाकिस्तान के इस भंवर-जाल से निकलने में अमरीका को एकमात्र ही रास्ता नजर आता है, और वह है भारत। अफगानिस्तान से निकलने में जितनी जरूरत अमरीका को पाकिस्तान की है, उससे कहीं अधिक जरूरत उसे पाकिस्तान के चंगुल से निकलने के लिए भारत की है। अब देखना है कि अमरीका पाकिस्तान के इस जाल से कैसे निकल पाता है।
दुनिया की महाशक्ति अमरीका की स्थिति आज पाकिस्तान जैसे पिद्दी-से देश के आगे मजबूर जैसी नजर आ रही है। कल तक पाकिस्तान को मोहरे के रूप में इस्तेमाल करता रहा अमरीका आज उसी का मोहर बनकर रह गया है। पाकिस्तान आज उसे नचा रहा है, अपने अनुसार चला रहा है, सच्चाइयों को झुठला अपनी हां-में-हां मिलाने को मजबूर कर रहा है। ...और अमरीका को यह सब करना प़ड रहा है। फिलहाल उसे इससे निजात पाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है। अमरीका ने सोवियत संघ के विघटन से पूर्व तक रूस-भारत गठजो़ड के खिलाफ पाकिस्तान का खुलकर इस्तेमाल किया। उसे खुलकर आर्थिक और सैन्य सहायता मुहैया कराई। यहां तक कि पाकिस्तान को परमाणु संपन्न देश बनाने में भी चोरी-छिपे मदद की। रूस और भारत के खिलाफ कई आतंकी संगठनों को पनपाया, लेकिन 9/11 के हमले ने उसकी आंखें खोल दी। वह छद्म रूप से अन्य देशों के खिलाफ जिस आतंकवाद के जरिए जंग छे़डे हुए था, अब उसे उसी से रू-ब-रू होना प़ड रहा है। करीब एक दशक से अमरीका और नाटो अफगानिस्तान फंसे हुए हैं। वो तालिबान और अल-कायदा से लोहा ले रहा है, लेकिन सफलता की किरण दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। अमरीका की इस मुहिम की नाकामयाबी पाकिस्तान, खास तौर पर उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना प्रमुख हैं। वे दो-तरफा रणनीति अपनाए हुए हैं।
दिखावे तौर पर वह अमरीका और नाटो का मददगार है, मगर अंदरूनी रूप से तालिबान और आतंकी संगठनों को पनाह दिए हुए है। उन्हें हथियार, धन और अन्य सुविधाएं मुहैया करा रहा है। अमरीका भी इस बात से अनभिज्ञ नहीं है। नाटो देशों की खुफिया एजेंसियां आईएसआई-सेना-तालिबान गठबंधन का बार-बार खुलासा करती रही हैं। अमरीका कई बार इन तथ्यों को क़डाई से पाकिस्तान के साथ उठा भी चुका है। मगर पाकिस्तान के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। अमरीका जैसी महाशक्ति की चेतावनियों और धमकियों को पाकिस्तान जैसा देश यों ही नजरअंदाज नहीं कर सकता, इसके उसकी पीछे मजबूत रणनीति है। पाकिस्तान जानता है कि अफगानिस्तान जंग उसके बिना नहीं जीता जा सकता। वह अमरीका और नाटो की जरूरत है। अफगानिस्तान में नाटो सैनिकों को लाइफ लाइन पाकिस्तान से जु़डी है। उसकी 80 फीसदी सप्लाई पाकिस्तान के रास्ते होती है। पाकिस्तान ने हाल ही अपनी हैसियत का अहसास अमरीका और नाटो करा भी दिया। उसके क्षेत्र में घुसकर नाटो हेलिकॉप्टरों के हमले के विरोध में पाकिस्तान ने नाटो की सप्लाई लाइन रोक दी। सप्ताहभर में ही अमरीका और नाटो ने घुटने टेक दिए और पाकिस्तान से माफी मांगनी प़ड गई। अमरीका, पाकिस्तान के ऎसे जाल में फंसा है कि उसे उसकी हर जायज-नाजायज मांगों के आगे घुटने टेकने प़ड़ रहे हैं। तालिबान और आतंकियों के सफाए के नाम पर पाकिस्तान ने अमरीका से जमकर धन और हथियार वसूले हैं। कई परियोजनाएं मंजूर कराई हैं। बाढ़ पीç़डतों के नाम पर अमरीका के जरिए अनाप-शनाप धन जमा किया है। सुरक्षा रणनीतिक करार के लिए दबाव बनाए हुए है। इस संबंध में पाक दल वाशिंगटन में जमा हुआ है। कश्मीर मामले पर भारत पर दबाव बनाने के लिए अमरीका को मजबूर कर रहा है। उसमें भी बहाना यही बनाया जा रहा है कि इस मसले का हल हुए बिना आतंकवाद समाप्त होना मुमकिन नहीं है। पाकिस्तान के इस भंवर-जाल से निकलने में अमरीका को एकमात्र ही रास्ता नजर आता है, और वह है भारत। अफगानिस्तान से निकलने में जितनी जरूरत अमरीका को पाकिस्तान की है, उससे कहीं अधिक जरूरत उसे पाकिस्तान के चंगुल से निकलने के लिए भारत की है। अब देखना है कि अमरीका पाकिस्तान के इस जाल से कैसे निकल पाता है।
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aap kee rachna padhee hai