शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

पति की फिल्म से ब़डे पर्दे पर उतरीं पाखी

यदि फिल्मोद्योग में अपनी जगह बनानी है तो किसी निर्देशक की पत्नी बनना कारगर हो सकता है।
नवोदित अभिनेत्री पाखी ने अपने निर्देशक पति अब्बास टायरवाला की फिल्म "झूठा ही सही" से अपने अभिनय की शुरूआत की है। फिल्म में पाखी का किरदार 30 मिनट से ज्यादा अर्से के बाद प्रवेश करता है। पाखी को लगा कि इस तरह वह लोगों को बहुत देर से पर्दे पर दिखेंगी। अब वह टायरवाला के इस सुझाव से सहमत हैं कि दर्शक उन्हें एक ऎसे गीत में देखें जो उनके किरदार के पर्दे पर आने से काफी पहले ही कहानी में शामिल होगा।
पाखी कहती हैं, ""ऎसा नहीं है कि नए गीत को केवल मुझे पर्दे पर उतारने के लिए कहानी में शामिल किया गया है। पहले से ही इस गीत की योजना थी। बस इतना हुआ है कि पहले फिल्म में किसी और स्थान पर यह गीत आना था और अब यह पहले ही आ जाएगा।""
पाखी ने कहा, ""मैं फिल्म में धीमी गति में नहीं दिखती न ही मैंने प्रत्येक दृश्य में बार-बार पोशाकें बदली हैं। मैंने एक सामान्य ल़डकी की भूमिका निभाई है। मैं "झूठा ही सही" में केंद्रीय किरदार नहीं हूं। इस कहानी में जॉन अब्राहम का किरदार केंद्रीय है। मुझे यह समझना चाहिए। पटकथा मैंने ही लिखी है।""
पाखी उनकी लिखी हर पटकथा में खुद को ही पेश करना नहीं चाहतीं। वह कहती हैं कि उनकी अगली पटकथा के लिए अभिनेत्री प्रियंका चोप़डा एकदम सही हैं। उन्होंने कहा कि वह सिर्फ अपने लिए ही पटकथाएं नहीं लिखेंगी। उन्हें लगता है कि "झूठा ही सही" में उनके काम पर ध्यान दिया जाएगा और अन्य पटकथा लेखक व निर्देशक भी उनकी फिल्मों में उन्हें लेने के लिए उनसे सम्पर्क करेंगे।
पाखी कहती हैं कि उन्होंने केवल जॉन के साथ अभिनय करने के लिए ही "झूठा ही सही" की पटकथा लिखी थी। जॉन कॉलेज में पाखी के साथी थे और वह उनके प्रति बहुत आकर्षित थीं।

22 अक्टूबर को रिलीज होगी झूठा ही सही

मुम्बई। बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम की फिल्म झूठा ही सही शुक्रवार को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो रही है। जॉन को निर्देशक अब्बास टायरवाला की फिल्म झूठा ही सही से काफी उम्मीदें हैं।
इस फिल्म में उन्होंने एक बुक स्टोर में काम करने वाले सामान्य से ल़डके की भूमिका निभाई है।
झूठा ही सही में टायलवाला की पत्नी व फिल्म की पटकथा लेखिका पाखी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जॉन का मानना है कि इस फिल्म को उनके प्रशंसक जरूर पसंद करेंगे। जॉन ने कहा, मेरी कद-काठी पर बहुत ध्यान दिया जाता है। इससे मेरा अभिनय छुप जाता है। जब मैं कोई रोमांस से भरी अच्छी भूमिका करता हूं तो लोग उसे किसी और तरह परिभाषित करते हैं। मैं जैसा दिखता हूं उसके लिए मुझे कोई अफसोस नहीं है लेकिन इसकी वजह से मेरा अभिनय छुप जाता है और लोग मेरी कद-काठी पर ही ध्यान देते हैं। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि उनके अभिनय पर भी ध्यान दिया जाए क्योंकि वह इसके लिए वास्तव में क़डी मेहनत करते हैं।> उन्होंने बताया कि जब टायरवाला ने उन्हें किरदार के विषय में बताया तो उन्हें इस बात का डर नहीं था कि वह कैसे दिखेंगे बल्कि इस बात की चिंता थी कि क्या वह इस भूमिका के साथ न्याय कर सकेंगे। उन्होंने कहा, जब मैंने फिल्म देखी तो मुझे अपने किरदार से प्यार हो गया क्योंकि सिर्फ यही फिल्म मेरी अपनी है जहां पहले तीन मिनट में तो पर्दे पर जॉन अब्राहम दिखता है और उसके बाद मैं भूल जाता हूं कि मैं जॉन हूं और मैं सिर्फ सिड (किरदार) पर ध्यान देता हूं और यही इस किरदार और निर्देशक की जीत है |

एक्शन सस्पेंस से भरपूर है आक्रोश

निर्माता: कुमार मंगल पाठक
निर्देशक: प्रियदर्शन


कलाकार: अजय देव

गन, बिपाशा बसु, अक्षय खन्ना, परेश रावल, रीमा सेन, अमिता पाठक

अगर आप एक्शन या सस्पेंस फिल्मों के दीवाने है तो आक्रोश आपको जरूर पसंद आएंगी। आक्रोश ऑनर किलिंग (जिसमें अपनी जाति से बाहर शादी करने वाले लडके या लडकी की हत्या कर दी जाती है) पर बनी फिल्म है, लेकिन फिल्म में सामाजिक समस्या कम और मारधाड वाले सीन ज्यादा प्रभावशाली तरीके से फिल्मित हुए है। फिल्म हॉलीवुड फिल्म मिसिसिपी बर्निग से प्रेरित है।

कहानी: आक्रोश की पृष्ठभूमि बिहार है। दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में पढने वाले तीन लडके बिहार जाते है। इनमें एक दीनू नाम का लडका बिहार का ही है। वह दलित है लेकिन ऊंची जाति की लडकी से प्यार करता है। तीनों लडकों का बिहार में अपहरण हो जाता है और उसके बाद उनके गायब होने का मामला सीबीआई को सौंपा जाता है। सीबीआई के अफसर सिद्वांत चतुर्वेदी (अक्षय खन्ना) और फौज के अधिकारी प्रताप कुमार (अजय देवगन) जॉच करने के लिए झॉझर आते हैं, लेकिन उनके लिए यह कार्य आसान नही रहता। प्रताप बिहार का ही निवासी है और अच्छी तरह जानता है कि जातिवाद की ज़डे झांजर जैसे गांव में कितनी गहरी हैं। प्रताप अपनी चतुराई से मामले की जांच करता है जबकि सिद्धांत कॉपीबुक तरीके से सीधे काम करने में यकीन रखता है। इस कारण दोनों के बीच टकराहट भी होती है। (परेश रावल) एक भ्रष्ट पुलिस अधिकारी की भूमिका में है जो झांझर में अपनी एक शूल सेना का मुखिया भी हैं जो समाज के ठेकेदार होने के नाते ऑनर किलिंग कर मासूम लोगों को मौत के घाट उतार देते है। गॉव की पुलिस, नेता और प्रभावशाली लोग आपस में मिले हुए है और इस बारे में कोई बोलने को तैयार नहीं है। सिद्वांत और प्रताप पीछे नहीं हटते और तमाम मुश्किलों के बावजूद मामले की तह तक जाते हैं।
फिल्म में चुस्ती और तेजी है। अक्सर सामाजिक समस्या पर केंद्रित फिल्म ढीली और भाषणबाजी से भरी होती है। आक्रोश के साथ ऎसी बात नहीं है। ये एक हालात के उतार चढाव की उत्तेजना देने वाली फिल्म है। अजय देवगन एक अपराधी का पीछा करने वाला और फिर जंगल से गुजरने वाला दृश्य तो बहुत रोचक है। हालांकि अक्षय खन्ना भी जमें है, लेकिन अजय देवगन के एक्शन के लिए फिल्म में ज्यादा गुंजाइश रखी गई है।
भाषा का बिहारी लहजा भी खासा रोचक है। परेश रावल हंसोड खलनायक की भूमिका में है। अजय के बाद फिल्म में सबसे प्रभावशाली चरित्र परेश का ही है। फिल्म में गीता की भूमिका निभाने वाली बिपाशा बसु से अच्छा अभिनय रीमा सैन ने किया है। समीरा रेड्डी ने आइटम नंबर करके बाजी मार ली। लेकिन इन पक्षों को छोड दें तो आक्रोश कुछ मायनों में निराश भी करती है।
जांच के लिए किसी सीबीआई ऑफिसर का जाना तो समझ में आता है लेकिन उसके सहयोगी के रूप में फौजी अधिकारी का जाना समझ में नहीं आता है।



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