रविवार, 14 मार्च 2010

एक संचिप्त भेंट


व्यथित हैं स्वामियों के काले कारनामों से स्वामी अग्निवेश - एक संचिप्त भेंट
किसी भी चीज पर धर्म का लेबल लगा देने से उसे तर्क से परे नहीं माना जा सकता - स्वामी अग्निवेश
धर्म के नाम पर लोगों को धन इकठ्ठा करना आज बहुत ही आसन कम लगता है शार्टकट तरीकों से इन्सान आज न तो दह्र्मात्मा बन पता है और न ही प्रतिष्ठित धर्म के स्वघोषित ठेकेदार लोगों के अंधविश्वास का जम कर फायदा उठाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं इन चतुर फरेबी लोगों ने एक विशालतम आश्रम खरे कर रखे हैं मंदिर,मजार,और भक्ति साधना के नाम पर ये लोगों से खूब ही धन इकठा करते हैं जबकी परदे के पीछे इनका काम कुछ और ही होता है दरअसल भीमानंद और नित्यानंद जैसे लोग आज संतों की खल ओढ़े हुए छिपे हुए भेदिये से कम नहीं बहुत लम्बी लिस्ट है ऐसे भेडियों की जो धर्म की आर में नशीले पदार्थों, सेक्स रैकेट,अवैध हथियार,क़त्ल,अपहरण और ठगी जैसे कारोबार को बेधरक अंजाम देते रहते हैं गाहे बगाहे ऐसे लोगों को बेनकाब होते देर नहीं लगती लेकिन जेल की चाहर्दीवारों में जाकर वे कितना पश्चात्ताप कर पाते हैं यह अभी कानून की परतों में ढका छिपा हुआ है
स्वामी ज्ञान्चैतन्य जिनपर अपनी महिला भक्त के साथ यौनाचार (Sexual Herrasment) का आरोप है स्वामी अम्रीताचैतन्य पर बलात्कार,ड्रग्स और एस्माग्लिंग के कई आरोप लगे केरल के इस बाबा को इंटरपोल ने बहरीन में गिरफ्तार किया स्वामी सदाचारी देश के सर्वोच्च नेताओं के संग कभी दिखनेवाला सदाचारी वेश्यालय चलने के आरोप में गिरफ्तार हो चूका है स्वामी परमानद तिरुची आश्रम में तेरह हत्या और बलात्कार के आरोप्शुदा हैं स्वामी रामपाल रोहतक हरयाणा में करोरों रूपये की सरकारी जमीन हड़पने का आरोपी है पुलिस पर अवैध हथियारों से यह फायरिंग के बाद गिरफ्तार हो पाया है जेल में है अभी सबसे बड़े भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त इंसानी शक्ल में भेदिया बना साधू स्वामी नित्यानंद दक्षिण भारत के तमिल हेरोईन के साथ सेक्स टेप टी.वी.चैनलों पर प्रसारित होने बाद लोग दांतों उंगलियाँ चबाने को बाध्य हो गए हैं इसने इंसानियत की सारी सीमायों को लाँघ कर आज के कलियुगी शैतान की अपनी शक्ल उजागर अवश्य की है लेकिन की होगा अब धर्म का और कौन कहलायेग धर्मात्मा? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर तलाशने कौमी फरमान की और से अब्दुल्ला ने देश के प्रमुख समाज सुधारक स्वामी अग्निवेश जी से अभी बातचीत की जिसे अब्दुल्ला के द्वारा ही हम यहान अपने सजग और बुद्धिमान पाठकों के लिए पेश कर रहे हैं - )
अब्दुल्ला - स्वामी जी आज आप देश में स्वामियों की कारनामों से वाकिफ होंगे बताइए इनकी करतूतों से आखिर कैसे इनपर यकीन किया जा सकता है ?
स्वामी - देखिये आज हमको सबसे पहले चमत्कार और रूढ़ीवाद की हथकड़ी को काटना होगा जैसे बहुत से आर्यसमाजी भी आज इसके चपेट में हैं कुछ को तो पता ही नहीं हैं कि " स्वामी दयानंद की जय " बोलकर वो वैदिक निर्देशों का कितना बार मजाक और उल्लंघन कर देते हैं और कुछ तो इसे ही वैदिक आधार मानकर करते चले आ रहे हैं बहुत बरी गलती है यह सत्यार्थ प्रकाश में स्वयम स्वामी दयानंद ने कहा है कि " अपना स्वयं तुम स्वयं तलाश करो मुझे सत्यप्रकाश में के माध्यम प्रकाश मिला यानि अर्थ की प्राप्ति हुई उसे ही मैंने सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से दिया है " उन्होंने बरी ही विनाम्रतापुर्वाक कहा है कि, "यदि इसमें मुझसे कुछ भूल हो गई हो तियो विद्वानों का यह नैतिक कर्तब्य है कि आपस में मिलकर मंथन के बाद उसमें संशोधन कर दें " आज इसी परंपरा की सख्त आवश्यकता है
हमारी नजरों में अब समय है कि धर्म की परिभाषा बदली जाये हम चाँद धर्माचार्यों द्वारा परोसे जा रहे धर्म को ही सत्य और अंतिम धर्म नहीं मान लें क्योंकि धर्म तो उसे कहते हैं जो आम आदमी की जीवन में सदाचार के द्वारा चल रहा होता है
अब्दुल्ला - आज जियो धर्म के आर में धोखा चल प्रपंच और अपराध की शीर्षस्थ घटनाएं अंजाम पाती अ रही हैं आपकी नजरों में क्यों है यह सब....?
स्वामी - हमारा माहौल आजन इतना दुष्टात्माओं की चंगुल में फंसता चला गया है कि असत्य को हमारे बीच सत्य का नकाब ओढकर आना परता है असली सोने की तरह पीलेपन का लबादा ओढ़कर ही तो बाजारों में नकली सोना आ रहा है , यह असत्य और बुराई की ताकत नहीं बल्कि उसकी कम्जर्फी और कमजोरी ही है, समझे न आप मेरी बात ...!
अब्दुल्ला - बाबाओं के दोहन शोषण के बारे में क्या ख्याल है आपका ?
स्वामी - इस परिप्रेख्स्य में अगर कास तौर से भारतीय समाज की बात करें तो आप देखेंगे कि यहाँ सामाजिक सुरख्षा पर किसी का ध्यान नहीं है चाहे वो समज हो या कोई एनी तंत्र बाबा लोग अपने पास आनेवालों भक्तों को भगवान का रास्ता तो दिखा नहीं सकते क्योंकि उन्होंने भगवान को तो कभी भूले से भी नहीं अपना बनाया इसीलिए उन्हें वो गुमराही के अन्धकार में धकेल देने के सिवाय और कुछ भी नहीं कर पाते हांलांकि इस प्रकार के शोषण दोहन का प्रतिकार न हो सकता है ऐसा भी नहीं है इसके लिए ब्यापक पैमाने पर परिचर्चाएं हों और उससे प्राप्त निदानार्थ रास्तों को अमल में लाया जावे बस देखिये स्वामी दयानंद और वैदिक आदर्शों से परिपूर्ण समाज पलभर में स्थापित हो जाएगा
अब्दुल्ला - तो क्या हो आधार और सामान्य Criteria आज कल बाबाओं और धर्म गुरुओं पर यकीन करने का या कि लोग इन सब पर से यकीन ही ख़तम कर लें...?
स्वामी - सबसे बरी बात है कि आप अपने ऊपर पहले यकीन करना सीख लीजीये भगवान की प्राप्ति हो जायेगे और ऐसा अगर होता है तो भले आत्माओं को तो सीधे भगवान,गाड या अल्लाह स्वयं रास्ता जो उज्जवल,स्वाच और सत्पथ की और उद्यत होता है पर अपको चलाया करेगा बुराइयां आपसे अनायास ही कोसों दूर भागने लगेगी अब आपने जो बाबाओं पर विश्वास की बात पूछी है तो अपने विवेक को जाग्रत करने की भी आवश्यकता है अंधविश्वास को दूर करने उसे विश्वास की कसौटी पर परख कर धर्म की तर्कसंगत धारणाएं और धर्म के नैतिकता के ऊपर आचरण आदि बैटन का ख्याल ही इस प्रकार के विश्वासों में ज्यादा सहायक होता है यही एक मात्र रास्ता है इन धोंग्बाजों को समाप्त कर धर्म के नाम पर इन सबों के द्वारा फैलाए जा रहे अनैतिकताओं को मानवीय सम्बेद्नाओं से जोरकर सीधा इसका प्रतिकार किया जाये मेरा व्यक्तिगत विचार है कि आज थ्री दी दूत देबत और आवश्यकता हो तो डीसेंट को अपने जीवन में उतारना परेगा तो इस वैज्ञानिक युग में सत्य का सम्मान स्वाभाविक रूप से बढेगा
अब्दुल्ला - आप सुनते रहते होंगे कि आज कथित धर्म गुरुओं के सीधे तार आतंकवादी संगठनों से भी जुरने लगे हैं, इसे कितना खतरनाक मानते हैं आप इस सूरतेहाल में क्या आज इन धर्म के ठेकेदारों को आत्म्शुधीकरण की आवश्यकता की गुजाइश बाकी रह गई है ?
स्वामी - बहुत दुखद है ये समाचार जब पढता सुनता हूँ तो आत्मा व्यथित हो उठता है लेकिन इसपर सरकार को थोरी कठोरता का अनुसरण करना होगा उसे अपने नियमों को निहारना चाहिए उसमें वंचित सुधर और उप्नियमिओन का समावेश करनी चाहिए रही जो बात आपने आत्म्शुधीकरण की की है ऐसा हो नहीं सकता दरअसल आम जनताओं को जाग्रत करना संतों का काम है जो सच्चे संत हों वही इस काम को बखूबी अंजाम दे सकते हैं और सच्चे संतों को हमें अपने विवेक और सद्बुधी से ही पहचानना होगा
अब्दुल्ला - और भी कुछ अंत में कहना चाहेंगे हमारे पाठकों के लिए .....?
स्वामी - सबसे पहले आपको लक्झ लाख साधुवाद जो " मुस्लिम समाज का प्रतिबिम्ब कौमी फरमान" लेकर मेरे पास आये , किसी भी चीज पर धर्म का लेबल लगा देने से उसे तर्क से परे नहीं माना जा सकता है यह मेरी समझ है , विज्ञान की जो कसौटियां हैं उससे परे नहीं मान्यता बनानी चाहिए, हमें सबों पर शक,बहस और आवश्यकतानुसार प्रतिकार अवश्य करनी चाहिये

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

aap kee rachna padhee hai