रविवार, 14 मार्च 2010

एक मुलाकात तारो ताजी

एक मुलाकात पत्रकार लेखक अब्दुल्ला से फोन पर पेंटर मकबूल फ़िदा हुसैन के साथ

(भारत के हुसैन अब यहाँ के नागरिक नहीं रहकर विदेश यानि क़तर के नागरिक हो गए हैं हुसैन के इस कदम की आहात विदेशों में कितनी खारकी या तो दुनियां जानती है लेकिन जिस देश न हुसैन को पाला पोसा उसने इस और पोजीटिव की बजाय निगेटिव चूँ-चपड़ ज्यादा ही की बेचारे अनाप शनाप सुन-सुन कर पहले ही आहत हो कर इस मुद्दे पर एकदम से चुप हो जाना ज्यादा बेहतर समझे और गालिबन क़तर की नागरिकता के पेपर पर साईन करने के एक पखवारे तक इन्होने कोई टीका टिप्पणी नहीं कर्ण अपने लिए बेहतर समझा चुप्पी का उनका यह दौर ज्यादा लम्बा नहीं चला और अखबार नाबीसों और अखबारों ने उनका मुहं खुलवा ही लिया
बेहद गरीब मुस्लमान घर में पैदा हुए हुसैन की शख्सियत काफी गर्दिशों से और संघर्षों की भयंकर लपट में झुलस-झुलस कर निखारा है दो साल के थे तो वालिदा (मां)का साया सर से उठ गया पिता ने दूसरी शादी कर ली तो महरूमी के इस शदीद एहसासातों के जलते अनगरों ने ही एक मदरसे से मामूली तालीमयाफ्ता और मामूली पेशेवर कातिब हुसैन को कलाकार के रूप में पुरी दुनियां में मकबूलियत अता फरमाई क्या इंस्पिरेशन के लिए हुसैन के इस मुका की आवश्यकता प्रगतिशीलता के लिए जरुरी नहीं है ? घर में परी चाँद किताबों को कबारी के हाथों बेच कर रंग ब्रश खरीदा और घर से एक जोड़ी कपडे में लिप्त यह "गुदरी का लाल" भाग कर मुम्बई आया गरीबी ने कभी पैरों में चप्पलें नहीं लगने दी , और नंगे पैर चलने का उन्हें शौक नही जिन्दगी का एक ऐसा चैप्टर जिसे वो हमेशा याद रखना और अपनी अतीत को हमेशा याद रखना चाह रहे होते हैं यही वजह उन्हें आज भी नंगे पाऊँ रहने को विवश करती है मुंबई में रातों को फुटपाथ पर सोना और पूरे दिन फिल्मों का पोस्टर बनाने से उन्होंने दुनियां का सर्वोत्तम नामची हस्तियों में शुमार होने का ख्वाब देखा था, खुदा ने उनकी नीयत को काबुल कर लिया और आज हुसैन के बारे में कुछ भी विशेष बताने आवश्यकता ही समाप्त हो गई है है ये है हुसैन की जिन्दागे का एक अहम् और अनछुआ पहलू
अभी कुछ दिनों पहले यानि पिछले हफ्ते जनाब हुसैन साहब से अचानक फोन पर एक व्यक्तिगत मुलाकात हुई तब मीडिया से सख्त परहेज की पीरियड में चल रहे थे हुसैन साहब बारे ही मान मनौवल के बाद जब उन्होंने यह वादा लिया कि अभी कोई इंटरव्यू कहीं मरी जानिब से प्रकाशित नहीं होगा तब कहीं जाकर उन्होंने बातें कीं आज विदेशों के कई मीडिया खास कर इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने उनका इंटरव्यू प्रसारित करना शुरू किया तो मुझे भी अपने इस वार्तालापों को आप से छुपाये रखने का संवरण नहीं बाकी रह सका आईये आप खुद ही इस खास बातचीत को पढ़ लें जिसमें आम मीडिया से कुछ हटकर ख़ास बातों का अनायास ही समावेश हो गया है अब्दुल्ला इसे पहलीबार खास कर कौमी फरमान के पाठकों के लिए पहलीबार पेश कर रहे हैं )

......ट्रिन...ट्रिन.....ट्रिन.....(मुझे हुसैन के फोन की इस घंटी ने पहला इस्तेकबाल किया )
हुसैन - हेल्लो [ हेल्लो कहने का यह हुसैन का खास अंदाज है] कौन...?
अद्बुल्ला - अस्स्लामोअलाय्कुम ; जनाब दिल्ली से अब्दुल्ला पत्रकार बोल रहा हूँ ....
हुसैन - [ कुछ पल कुछ याद करने के बाद ] वालेकुम अस्सलाम.....कहो भाई कैसे हैं.........?
अब्दुल्ला - जी ठीक हूँ , आप कैसे हैं ?
हुसैन _ क्यूँ ! सारी दुनियां जान रही है कैसा हूँ मैं तुम्हें पता नहीं ?
अब्दुल्ला - पता है [ बीच में ही टपक से बोल पड़ते हैं...]
हुसैन - चलो....चलो ठीक है बताओ क्या हो रहा है...कैसे फोन किया ?
अब्दुल्ला - बस जी में आया कुछ बात करूँ आपसे....
हुसैन - भाई आज कल तो अखबारों से बातें करनी बंद कर रखी है लेकिन तुम्हें अगर सिर्फ बातें ही करनी हो तो फिर उठने दो फोन का मीटर वरना आइन्दा कुछ कहना होगा तो अपना नंबर छोड़ दो मैं फोन कर लूँगा ....
अब्दुल्ला - जी........
हुसैन - कहीं कुछ छापना वापना तो अही है ?
अब्दुल्ला - फ़िलहाल ऐसा इरादा तो नहीं है लेकिन हो भी जाये तो कुछ कह नेहे सकता...
हुसैन - अभी मत कहीं कुछ छापना....
अब्दुल्ला - चलिए ये तो बताइये कि कुछ ही दिनों पहले आपने चलते चलत बताया था कि आपके तमन्ना जल्द से जल्द भारत वापसी का है मगर अचानक क्याकातर ने जादू कर दिया ?
हुसैन - हाँ भाई तुम भी ऐसे हे पूछोगे न जानते हो न कि अब बुध हो चूका हूँ और काम अभी भी बहुत सारे करने बाकी रह गए हैं भारत में क्या कुछ नहीं उया मेर साथ सभी तो वाकिफ हैं ! अब तो थोड़ी सी चैन ओ सुकून मिले जिससे कि अधुरा कम वाम जो है वो पूरा कर सकूँ जो कुछ भी अपने फेन के मुंसलिक ख्वाब मैंने देख रखे हैं उसे मुझे हर हल में पूरा करने हैं भाई....वक़्त भी बहुत कम रह गया ही !
अबदुल्ला - वक़्त की कमी से क्या मतलब है आपका ?
हुसैन - मतलब साफ है कि सौ साल का होने में पांच ही साल तो बाकी रह गए हैं सहयाद मेरा खुदा अभी मेरे जरिये किये गए कामों से तसल्लीजादा नहीं हो पाया है इसलिए उसने उम्रे अजीम के कुछ पल और दे रखे हैं उस्स्की रजामंदी के लिए तो करना ही पड़ेगा न ?
अब्दुल्ला - लेकिन अचानक इस उम्रे अजीम के बाकी पल को गुजरने को आपको अपने वतन से छोड़ने का फैसला क्या मुनासिब लगा ?
हुसैन - आप नहीं जानते हैं कि जो काम मुझेकारने हैं जैसे कि भारतीय सिनेमा के सौ साल , भारतीय सभ्यता का इतिहास और अन्य दूसरी सभ्यताओं का इतिहास आदि जैसे टापिकों पर काम करने क वास्ते मुझे प्रायोजकों की जरुरत है जो हिंदुस्तान में नहीं मिला मुझे क़तर के शेख मोजः ने दूसरी सभ्यताओं पर प्रयोजकत्व स्वीकार कर मुझे कम करने के लिए बुलाया, और ऐसा करने के लिए मुझे वहां के आय कर ढांचे के तहत एनाराई बनना पड़ा
बहुत सारी बातें हैं लेकिन अब मैं सिर्फ अपने कामों पर तवज्जो दे रहा हूँ और ऐसा ही करता रहूँगा , सच तो आज भी मेरे दिल में यही है कि " हिंदी हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा (हिन्दोस्तान हमारा) " भाई पैदाइशी तो हिन्दुस्तानी ही हूँ, था और इंशाल्लाह रहूँगा इससे कोई क्या मैं खुद भी इंकार नहीं कर सकता न !
अब्दुल्ला - लेकिन हिन्दुस्तानी सरकार के बारे में अब क्या ख्याल है आपका ?
हुसैन - सही बात तो यह है कि हिंदुस्तान सरकार मेरे सुरक्षा कर नहीं सकी उसे मी कामों की परवाह नहीं, लेकिन चलो कोई बात नही अब उम्र भी नहीं रहे कि मिस्मानाजिज्म से टकरा जाऊं !
पहले तो वे मेरी जानो माल की हिफाजत करने में विफल रहे और अब जब कि मैं सुरक्शुइत हूँ तो कह रहे हैं कि वापस आ जाओ ...क्या है ये सब क्यों मेरी आनो शान की पीछे हाथ धो कर पद गए हैं ? बताओ ...?
अब्दुल्ला - तो कही कुछ राज या धोखा महसूस कर रहे हैं या करने लगे हैं?
हुसैन - नहीं रत्ती बराबर भी मेरे दिल में ऐसी बात नहीं है मई ऐसा न तो कह सकता हूँ और न ही कहूँगा
अब्दुल्ला - तो बातें आपकी जाहिर करती है कि आप भारत से ज्यादा क़तर में बा हिफाजत हैं ?
हुसैन - देखिये अब्दुल्ला जी ऐसा नहीं है सरकार अपनी दायरे में अपनी सीमाओं के तहत काम कर रही है और मेरा अपना दायरा और सीमा है जिसमे अपनी जिन्दगी को अपने हिसाब से अपनी मनचाही जगह पर करने का अधिकार इसलिए है कि खुदा ने दुनिया एक ही बनाई एक ही जमीन और आसमान हम सब आलमे इंसानों के लिए है चाहे जिस जगह रहोगे रहोगे तो उसी की दुनिया में ! लेकिन सवाल रहा मेरे अपने वतन भारत का तो कभी भी मई वापस वतन लौटने का फैसला कर सकता हूँ बस जरा काम पूरा हो जाये फिर इस बारे में सोचेंगे अगर खुदा ने चाह तो सब ठीक हो जायेगा आपको अभी मैंने बताया न कि मैं चाहे कही भी दुनिया के किसी कोने में रहूँ रहूँगा तो भारतीय पेंटर ही मैं एक आजाद नागरिक हूँ सो तो आप मानेंगें....?
अब्दुल्ला - क्यों नहीं.....
हुसैन - बस तो फिर मैंने कोई खून तो नहीं किया है अभीव्याक्तियाँ व्यक्त की हैं मैंने जिसे कुछ लोग नहीं समझ सके हैं जिससे आज के हालत पैदा हो गए है बस यही बात है
अब्दुल्ला - कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि भारत सरकार की उपेख्शापूर्ण नीतियों से आपने व्यथित होकर ऐसा कदम उठाया है ?
हुसैन - बेकार की बातें हैं ये सब ऐसा मत बोलिए आप अगर आज मुझे कोई मुहब्बत से खुलूस से अपने यहाँ मुझे बुलेये और दूसरा नहीं चाहता कि मैं वहां जून तो क्या किसी की मोहब्बत को तर कर दूँ? ये इंसानी एखलाक तो नहीं है ? मैं उसे बहुत मुहब्बत करता हूँ जो मुझे मुहब्बत करता है खुइदा का हुक्म भी तो यही है कि अपने से प्यार करने वालों को उससे कहीं ज्यादा प्यार करो खुदा की रजा भी इसी में मिलती है
अब्दुल्ला - लेकिन आपके चाहने वाले प्यार करने वाले हिन्दुस्तानीयों की जो भावना आहत हुई हैं सो...?
हुसैन - ठीक है लेकिन जो कुछ भी हुआ मेरे चाहने वालों को उसकी भी खबर है वो जानते हैं कि क्या गलत क्या सही हुआ उनका प्यार मेरे कलिए अगर है तो वो भी मेरे सलामती ही चाहेंगे हाँ दुखद है ऐसा होना जो मेरे साथ हुआ मैं मानता हूँ लेकिन चाँद लोगों के कारण ऐसा हुआ इसलिए पूरे देश को और लोकतान्त्रिक प्रशाशन जिसकी एक सीमाएं हैं काम करने की उससे शिकायत या उसकी कमी बताना भी एक अपराध है मैं ऐसा नहीं कर सकता
अब्दुल्ला - क़तर को कर्मभूमि चुना और लोकतंत्र की ओर इतनी आस्था क्या है ? ये क़तर तो अलोकतांत्रिक देश है कैसे सम्हाल पाएंगे अपनी मानसिकता को जो इतनी आजाद परिंदे की तरह आज तक उर्ती रहती आई है ?
हुसैन - सारी बातें बताने की की जरुरत है ?
अब्दुल्ला - सही बात है लेकिन जिस सवाल का जवाब आपके पास है उसे जाहिर करने में हर्ज क्या है ?
अब्दुल्ला - सही बात है लेकिन जिस सवाल का जवाब आपके पास है उसे जाहिर करने में हर्ज क्या है ?
हुसैन - आप जानते होंगे कि हमेशा से मैं मुफ्तालिफ शहरों में रहता आया हूँ जब जहाँ जैसा मौका लगता मेरी आदत है वहीं वैसा कैनवास लगा लेता हूँ मैं तो प्यार का कायल और भूखा हूँ सबसे बरी बात है आप के सवाल का जवाब तो यही कहूँगा " हमें तो भेजा गया है भवर से लड़ने को / हमारी उम्र किनारे नहीं लगती" बस इतना से ही निकल लीजीये अपने सस्वालों का जवाब.....
अब्दुल्ला - आपकी सुरक्षा के मुताल्लिक गृह मंत्री महोदय ने भी कुछ कहा तो था जहाँ तक मुझे याद आ रही है उन्होंने इससे सम्बंधित कुछ वायदे भी तो आपसे किये थे फिर कहीं आप जो अपनी असुरक्षा की बाबत जो कुछ कह रहे हैं उसमें कुछ और मतलब तो नहीं?
हुसैन - आपने शायद बाजिद होकर सोच लिया है कि जो आप चाहेंगे उसका और उस् मुताबिक मुझसे जवाब तलब करेंगे ...?
अबदूला - देखिये ऐसी बात नहीं है में तो आपकी अंतर्वेदना की सच्चाई लोगों को बताने को प्रयास कर रहा हूँ अब आप पर है आप उसे चाहे जिस अंदाज में लें लेकिन अगर मुनासिब मुद्दों की शक ओ शुबहा लोगों का दूर हो तो घुमा फिराकर फायदा आपको और हम सबको ही तो है ?--
हुसैन - इन बातों की जदीद तफसील मैं नहीं करना चाहता आप नहीं मानते तो इतना ही कहूँगा कि आप गृह मंत्री साहेब को मत दिसतुरब करें उनकी अपनी रूटीन है चलने दीजीये उन्हें अपने रस्ते पर मुझे भी भारत अभे मेरे कम करने के ऐतबार से ज्यादा मुनासिब नहीं है इसलिए मुझे कहीं न कहीं काम की जगह तो चाहिए ही इसकी बहुत सारे वसायल हैं गृह मंत्री जी को मैं तो जानता ही हूँ आप भी तो जानते होंगे !
अब्दुल्ला - चलिए एक अलग सी बात आपके ज़ुबानी सुनना चाहता हूँ कि आखिर " हुसैन के पाँव नंगे होने का राज क्या है ?
हुसैन - किसी के नंगे पैर चलने पर आखिर क्यों सवाल चाहे वो हुसैन हो या सुकरात बुध हो या और कोई ! मुझे बस इसकी आजादी चाहिए मेरे लाईफ की एक ऐसी ट्रेजेडी है जिसकी याद इन नंगे पैरों से मैं जिन्दा रखना चाहता हूँ

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