देश में धडाधड हो रही ऑनर किलिग से पूरा देश सदमे में है। जिन परिवारों ने इस अपराध में अपनी प्रिय संतानों को खोया है वे भी इस वेदना को बरदाश्त नहीं कर पा रहे थे। वे अपने सूखे हलक से इस अपराध को स्वीकार कर रहे थे।मेरी मुलाकात एक ऐसे परिवार से हुयी जो इस पीडा से गुजरा था। यह परिवार इस घटना के लिये किसी की सांत्वना नहीं चाह रहा था,उनका सोचना था कि लोग आयेंगें और केवल उनकी हॅसी उडायेगें। गॉंव-समाज के अधिकांश स्त्री-पुरूष ऐसी घटनाओं के पीछे नाजायज यौन सम्बधों को कारण मान रहे थे।जिन परिवारों पर ऑनर किलिंग का दोष लगा था,समाज में उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा ज्यादा उचीं नहीं थी।उनकी आथिर्क स्थिती भी ज्यादा अच्छी नहीं थी।कानूनन अपराधी परिवारों का कहना था कि पूरे गॉंव में इस बात की बदनामी थी कि हमारी लडकी के अपनों से नाजायज रिश्ते हैं।इससे उनके दूसरे बच्चों के वैवाहिक रिश्ते बनाने में परेशानी आती।उस गॉंव में काफी पढे-लिखे लोग भी थे।मैंने ऐसे लोगों के बीच नाजायज यौन सम्बधों व इसके लिये की जाने वाली हत्याओं पर खुल कर बातचीत करने की कोशिश की,और लोगों ने इस बहस में बेबाकी ढंग से भागीदारी की।लोगों ने अपने ढंग से यह स्वीकार किया कि प्रेम सम्बधों में कोइ बुराई नहीं है,लेकिन यह काम खुलेआम करना सही नहीं है।एक ही गौत्र में यह करना सबसे बडीगलती है।सबका मानना था कि अब हमारे समाज को उचित मार्गदर्शन की जरूरत है।कोई भी कानून इस काम को नहीं कर सकता।अगर ऑनर किलिंग के लिये कोई जिम्मेदार है तो वह हम और हमारा समाज है।देश के विद्धानों के अनुसार संस्क्रति नामक कचरा एक ऐसी जड है,जो ऑनर किलिंग के लिये काफी हद तक जिम्मेदार है।बुद्धिजीवी मानते हैं कि जाति तोडकर प्रेम विवाहों को अनुमति प्रदान करने से ऑनर किलिंग जैसे अपराध नहीं होंगें।मुझे इस पर काफी हद तक विरोधाभास दिखाई पडता है।मैं डंके की चोट पर कह सकता हूं कि सांस्क्रतिक दायरे के बाहर यदि ऑनर किलिंग जैसे अपराधों का इलाज सोचा गया तो यह अपराध किसी दूसरे भंयकर रूप में हमारे सामने खडा होगा।
समाज शास्त्र में सांस्क्रतिक निरपेक्षता एक ऐसा सिद्धांत है,जिसमें किसी दूसरे समाज के लोक व्यवहारों को निक्रष्ट मानने की मनाही है। लेकिन हमारे यहॉं की पूरी मीडिया,व बौद्धिक वर्ग मौका मिलते ही भारतीय संस्क्रति पर हमला बोल देते है।हम सब जानते हैं कि हर समाज में विवाहों के दो रूप हैं।एक प्रतिबंद्धित विवाह,जिसमें कुछ रिश्तों में विवाह एवं यौन सम्बधों की पूर्ण मनाही होती है। दूसरे विवाह का रूप अनुमन्य विवाह होता है,इसमें प्रतिबद्धिंत विवाह के बाहर विवाह की अनुमति दी जाती है।काफी लोगों का मानना है कि भारतीय समाज में दबे-छुपके इन सब के विरूद्ध भी यौन सम्बध स्थापित किये जाते हैं।यानि ऐसे लोग नकारात्मक सोच एवं पूर्वाग्रह के आधार पर भारतीय समाज की संरचना पर अविश्वास व्यक्त कर रहे हैं। किसी भी समाज की सामाजिक संरचना ऐसा ताना-बाना होता है,जो हमारे जीने के दायरे र्निधारित करता है।वास्तविकता में यह लोकमानस से निधार्रित होता है। इसी के अनुसार हमें अपनी सामाजिक भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है।यानि कि यहॉ व्यक्ति कम,उसकी भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है।मेरा विचार है कि भारतीय समाज में प्रेम सम्बधों की पूर्ण मान्यता है,लेकिन अवैध सम्बधों की मनाही है।आखिर ऑनर किलिंग के लिये गरीब परिवारों को किसने उकसाया,यह सोचने का विषय है। समाज के लम्बरदार व मठाधीश ही ऐसे लोग हैं,जिन्हौंने स्वंयभू बनकर झूठी शान बनायी है।और भूमिका की जगह व्यक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण कर दिया गया है।और समाज के गरीब लोग इनका मजबूरी में अनुकरण करते हैं। अब इन लोगो को कौन समझाये कि ऑनर किलिंग में अपने प्रियजनों की हत्या से सम्मान कैसे बचा रह सकता है।हॉं अगर सगोत्रीय विवाह का यदि मामला हो तो पारवारिक नियंत्रण इसमें कारगर हो सकता है। लेकिन अंधे-बहरे समाज में पीरवार व समाज के नियंत्रण को कोइ जगह नहीं है।सब कुछ समाज के ठेकेदारों के हाथ में रहना चाहिये,ताकि इससे उनका धंधा चल सके। जैसे ही किसी मामले की जानकारी मीडिया को लगती है,पूरा मीडिया चीख-चीखकर वो र्चचेआम कर देती है,कि गरीब आदमी की सहायता कम ,बदनामी ज्यादा हो जाती है।इसी के बचाव के लिये दुखी आदमी अपनों की जान ले लेता है।ऑनर किलिंग के दोषी परिवार के साथ जो रात मैने बितायी,उसका अनुभव इतना दर्दनाक था कि परिवार के छोटे बच्चों के मुंह पर आंसुओं की सूखी लकीरें सब कुछ व्यक्त करने के लिये पर्याप्त थीं।म्रत लडकी की मॉ रोते-रोते बेहोश हो जा रही थी।उसे बेटी खोने का गम था व पति को सजा का डर।उन सबका मानना था कि इस वेदना को देखने से पूर्व वो मर जाते तो अच्छा था।
लेकिन इस सबसे हमें क्या। हमें उधार का पाश्चात्यीकरण चाहिये ,चाहे,इसके एबज में कितनी भी जान जांये।क्योंकि परसंस्क्रतिकरण में विश्वास करना हमारी तौहीन है,जौकि स्वतंत्र व दूरर्वर्ती प्रक्रिया है।
समाज शास्त्र में सांस्क्रतिक निरपेक्षता एक ऐसा सिद्धांत है,जिसमें किसी दूसरे समाज के लोक व्यवहारों को निक्रष्ट मानने की मनाही है। लेकिन हमारे यहॉं की पूरी मीडिया,व बौद्धिक वर्ग मौका मिलते ही भारतीय संस्क्रति पर हमला बोल देते है।हम सब जानते हैं कि हर समाज में विवाहों के दो रूप हैं।एक प्रतिबंद्धित विवाह,जिसमें कुछ रिश्तों में विवाह एवं यौन सम्बधों की पूर्ण मनाही होती है। दूसरे विवाह का रूप अनुमन्य विवाह होता है,इसमें प्रतिबद्धिंत विवाह के बाहर विवाह की अनुमति दी जाती है।काफी लोगों का मानना है कि भारतीय समाज में दबे-छुपके इन सब के विरूद्ध भी यौन सम्बध स्थापित किये जाते हैं।यानि ऐसे लोग नकारात्मक सोच एवं पूर्वाग्रह के आधार पर भारतीय समाज की संरचना पर अविश्वास व्यक्त कर रहे हैं। किसी भी समाज की सामाजिक संरचना ऐसा ताना-बाना होता है,जो हमारे जीने के दायरे र्निधारित करता है।वास्तविकता में यह लोकमानस से निधार्रित होता है। इसी के अनुसार हमें अपनी सामाजिक भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है।यानि कि यहॉ व्यक्ति कम,उसकी भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है।मेरा विचार है कि भारतीय समाज में प्रेम सम्बधों की पूर्ण मान्यता है,लेकिन अवैध सम्बधों की मनाही है।आखिर ऑनर किलिंग के लिये गरीब परिवारों को किसने उकसाया,यह सोचने का विषय है। समाज के लम्बरदार व मठाधीश ही ऐसे लोग हैं,जिन्हौंने स्वंयभू बनकर झूठी शान बनायी है।और भूमिका की जगह व्यक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण कर दिया गया है।और समाज के गरीब लोग इनका मजबूरी में अनुकरण करते हैं। अब इन लोगो को कौन समझाये कि ऑनर किलिंग में अपने प्रियजनों की हत्या से सम्मान कैसे बचा रह सकता है।हॉं अगर सगोत्रीय विवाह का यदि मामला हो तो पारवारिक नियंत्रण इसमें कारगर हो सकता है। लेकिन अंधे-बहरे समाज में पीरवार व समाज के नियंत्रण को कोइ जगह नहीं है।सब कुछ समाज के ठेकेदारों के हाथ में रहना चाहिये,ताकि इससे उनका धंधा चल सके। जैसे ही किसी मामले की जानकारी मीडिया को लगती है,पूरा मीडिया चीख-चीखकर वो र्चचेआम कर देती है,कि गरीब आदमी की सहायता कम ,बदनामी ज्यादा हो जाती है।इसी के बचाव के लिये दुखी आदमी अपनों की जान ले लेता है।ऑनर किलिंग के दोषी परिवार के साथ जो रात मैने बितायी,उसका अनुभव इतना दर्दनाक था कि परिवार के छोटे बच्चों के मुंह पर आंसुओं की सूखी लकीरें सब कुछ व्यक्त करने के लिये पर्याप्त थीं।म्रत लडकी की मॉ रोते-रोते बेहोश हो जा रही थी।उसे बेटी खोने का गम था व पति को सजा का डर।उन सबका मानना था कि इस वेदना को देखने से पूर्व वो मर जाते तो अच्छा था।
लेकिन इस सबसे हमें क्या। हमें उधार का पाश्चात्यीकरण चाहिये ,चाहे,इसके एबज में कितनी भी जान जांये।क्योंकि परसंस्क्रतिकरण में विश्वास करना हमारी तौहीन है,जौकि स्वतंत्र व दूरर्वर्ती प्रक्रिया है।
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aap kee rachna padhee hai