शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

लेख

अमेरिका व मुस्लिम जगत के मध्य संदेह

अब्दुल्ला
इस्लाम व ईसाईयत के मध्य सभ्यताओं के संघर्ष की जो अवधारणा गत् कई दशकों से दुनिया में महसूस की जाने लगी थी तथा कुछ लेखकों, चिंतकों तथा विशेषज्ञों द्वारा बार-बार यह प्रमाणित करने का प्रयास किया जा रहा था, ऐसी सभी निरर्थक कही जा सकने वाली अवधारणाओं पर तो दरअसल तभी विराम लग गया था जबकि अमेरिकी जनता ने एक अफ्रीकी अमेरिकी मुस्लिम मूल के व्यक्ति बराक हुसैन ओबामा को अपना राष्ट्रपति चुन लिया था। इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका व मुस्लिम जगत के मध्य संदेह व नफरत की खाई और गहरी होने का श्रेय जहां अनेक अमेरिकी नीतियों को जाता है, वहीं इस्लाम तथा जेहाद के नाम पर दुनिया में आतंक फैलाने वाले लोग भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। परन्तु इसके बावजूद यह कहने में भी कोई हर्ज नहीं है कि इस्लाम व ईसाईयत के मध्य संदेह के जिस बीज को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश प्रथम ने रोपा था, उसका भरपूर पोषण जॉर्ज बुश द्वितीय के दोहरे शासनकाल में बखूबी किया गया। 9/11 के बाद जॉर्ज बुश के नेतृत्व में उठाए जाने वाले अहंकारपूर्ण एवं प्रतिशोधात्मक कदमों से तो एक बार पूरी दुनिया को यह महसूस भी होने लगा था कि दुनिया का एक बडा भाग वास्तव में इस समय सभ्यता के संघर्ष से रू-ब-रू है। परन्तु हकीकत यह है कि ऐसा विश्ा*ेषण, ऐसी अवधारणा तथा इस प्रकार की कयास आराइयां सब कुछ बेबुनियाद थीं।

पिछले दिनों मिस्र की राजधानी काहिरा में काहिरा विश्वविद्यालय में मुस्लिम जगत को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अस्सलाम-अलेकुम कहकर जब अपने भाषण की शुरुआत की तो पूरा मुस्लिम जगत भाव विह्वल हो उठा। अपने पूरे भाषण में ओबामा ने इजराईल-फिलिस्तीन, इराक, अफगानिस्तान, ईरान जैसे विवादित राजनैतिक मुद्दों पर जहां संक्षेप में रौशनी डाली तथा इन विषयों पर अमेरिकी पक्ष रखने के साथ-साथ इनके हल के लिए मुस्लिम जगत से सहयोग देने की अपील की, वहीं अपने भाषण के दौरान कुरान शरीफ की आयतों का प्रयोग कर ओबामा ने यह साबित करने की भी भरपूर कोशिश की कि अमेरिका व ईसाईयत सभी इस्लाम का आदर करते हैं तथा इस्लाम को एक सहिष्णुशील धर्म के रूप में स्वीकार करते हैं। काहिरा पहुंचने से पूर्व राष्ट्रपति ओबामा सऊदी अरब गए तथा वहां शेख अबदुल्ला से गले मिलकर मुस्लिम जगत की ओर दोस्ती का हाथ बढाने की शुरुआत की।
हालांकि दुनिया में ओबामा की विश्व शांति स्थापित करने की इन कोशिशों की कुछ लोग आलोचना भी कर रहे हैं। परन्तु वास्तव में दुनिया के अमन पसंद देशों ने तथा शांतिप्रिय नेताओं ने ओबामा द्वारा शांति की दिशा में उठाए जाने वाले इस कदम का स्वागत भी किया है। आलोचना का पहला स्वर तो अमेरिका में ही ओबामा के राजनैतिक विरोधियों के हवाले से सुनने को मिला। कुछ ओबामा विरोधियों का कहना था कि काहिरा में दिए गए राष्ट्रपति के भाषण से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि वे पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की नीतियों के लिए माफी मांग रहे हों। जबकि वास्तव में अपने भाषण के माध्यम से ओबामा दुनिया को यह संदेश देना चाहते थे कि अमेरिका इस्लाम व इस्लामी दुनिया का दुश्मन नहीं है। उन्होंने अपने पूरे भाषण के दौरान अमेरिका व मुस्लिम देशों के मध्य दशकों से चले आ रहे सन्देहों व मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने अपने सम्बोधन में हालांकि यह स्वीकार किया कि दोनों पक्षों के मध्य काफी लंबे समय से अविश्वास का ही माहौल रहा है। परन्तु भविष्य के लिए उनका कहना था कि अब अमेरिका व इस्लामी जगत दोनों पक्षों को ही एक दूसरे का आदर व सम्मान करने के साथ-साथ आपसी समझ विकसित करने के निरंतर प्रयास करने चाहिए। ओबामा ने इसीलिए अपने सम्बोधन के आरम्भ में ही स्पष्ट रूप से यह कहा कि- ‘मैं यहां अमेरिका तथा मुस्लिम देशों के मध्य नई शुरुआत करने आया हूं। जो आपसी हितों व एक दूसरे के सम्मान पर आधारित होगी।’

दरअसल मुस्लिम जगत विशेषकर अरब देशों व अमेरिका के मध्य संदेह व नफरत की बुनियाद अमेरिका द्वारा इजराईल को आंख मूंद कर दिए जाने वाले समर्थन को लेकर पडी थी। यह संदेह विश्वास की दिशा में तब चल पडा जबकि सत्तर के दशक में अमेरिका द्वारा ईरान-इराक युद्घ के दौरान इराक को समर्थन देकर इन दो बडे मुस्लिम देशों को कमजोर करने का काम शुरु किया गया। उसके पश्चात अफगानिस्तान में सोवियत संघ की फौजों पर लगाम लगाने हेतु अमेरिका ने तालिबान जैसी हिंसा व अमानवीय विचारों को धारण करने वाली संस्था को अपना समर्थन दिया। तत्पश्चात 199॰ में सद्दाम हुसैन द्वारा कुवैत पर अवैध कब्जा जमाने के बाद जिस प्रकार सुनियोजित षड्यन्त्र के रूप में अमेरिका ने कुवैत की धरती पर अपने पांव जमाए तथा वहां अपनी सैन्य छावनी स्थापित की, वह भी मुस्लिम जगत के गले से नहीं उतरा। उधर ईरान में आई इस्लामी क्रांति के पश्चात ईरान में पैदा हुए अमेरिका विरोधी वातावरण ने मुस्लिम जगत में अमेरिका को काफी रुसवा किया। रही सही कसर 9/11 को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका विशेषकर तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश द्वारा अफगानिस्तान व इराक में की गई सैन्य कार्रवाईयों के बाद पूरी हो गई। इराक व अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य हस्ताक्षेप के पश्चात मारे गए लाखों आम नागरिकों की मौत ने तथा खंडहर का रूप ले चुके इन दोनों देशों के बिगडे भूगोल ने तो गोया अमेरिका व इस्लामी देशों के मध्य नफरत व संदेह के साथ-साथ सभ्यता के संघर्ष का प्रमाणपत्र ही जारी कर दिया।
निश्चित रूप से ओबामा ने काहिरा विश्वविद्यालय में दिए गए अपने भाषण में ठीक ही स्वीकार किया है कि वर्षों से चला आ रहा अविश्वास केवल मेरे भाषण मात्र से समाप्त नहीं हो सकता। परन्तु उन्होंने इस बात पर पूरा जोर दिया कि दुनिया में अमन लाने की खातिर संदेह विवाद तथा मतभेदों का यह सिलसिला अब खत्म भी हो जाना चाहिए। ओबामा ने इजराईल को यह सलाह दी कि उसे फिलिस्तीन के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए तथा पश्चिमी तट पर निर्माणाधीन इजराईली बस्तियों के निर्माण पर रोक लगाने की भी उन्होंने हिदायत दी। ओबामा ने मुस्लिम जगत को यह विश्वास दिलाया कि इराक की प्रत्येक सम्पदा इराकवासियों की ही है तथा अमेरिका का उस पर अधिकार जमाने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने पुनः दोहराया कि अमेरिकी सेना अपनी निर्धारित समय सीमा 2॰12 तक इराक को इराकवासियों के हवाले कर वापस लौट जाएगी। हां अफगनिस्तान के विषय में ओबामा ने यह जरूर कहा कि हम वहां से भी अपने सभी सैनिक खुशी-खुशी वापस बुला लेंगे यदि उन्हें यह विश्वास हो जाए कि अफगानिस्तान व पाकिस्तान में अब उस प्रकार के हिंसक चरमपंथी नहीं बाकी रह गए हैं जोकि अधिक से अधिक अमेरिकी लोगों को मारना चाहते हैं। ईरान के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम पर भी ओबामा ने स्पष्ट किया कि हालांकि किसी भी देश को यह अधिकार नहीं है कि वह यह निर्धारित करे कि किस देश के पास परमाणु हथियार होने चाहिए। परन्तु उन्होंने यह भी साफ किया कि मध्य पूर्व में परमाणु हथियारों की होड नहीं होनी चहिए
ओबामा के मुस्लिम जगत को किए गए सम्बोधन को लेकर आलोचना के कितने ही स्वर क्यों न बुलंद हो रहे हों परन्तु वास्तव में दुनिया का अमन पसंद आम मुसलमान चाहे वह किसी भी देश का नागरिक क्यों न हो, ओबामा के इन सकारात्मक प्रयासों से न केवल खुश है बल्कि आशान्वित भी है। अब यह मुस्लिम देशों का दायित्व है कि वे ओबामा द्वारा बढाए गए शांति व अमन के हाथों को संदेह का हाथ समझने के बजाए विश्वास का हाथ समझें तथा दुनिया के जिन-जिन इस्लामी देशों में हिंसा फैलाने वाली चरमपंथी शक्तियां संगठित हैं, उनका मुकाबला वह देश स्वयं अपने स्तर पर करें ताकि अमेरिका को दखल देने की जरूरत ही न महसूस हो। हां ओबामा को भी इस दिशा में और रचनात्मक कदम उठाते हुए न केवल उचित व निर्धारित समय पर इराक व अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं वापस बुला लेनी चाहिए बल्कि दुनिया के अन्य तमाम देशों में भी जहां-जहां अमेरिकी सेना अकारण अपना डेरा डाले हुए है, उन सभी अमेरिकी सैन्य ठिकानों को समाप्त कर देना चाहिए। ओबामा यदि सकारात्मक भाषण के साथ-साथ रचनात्मक रूप से भी सकारात्मक कदम उठाते हैं तो वास्तव में इतिहास उन्हें विश्व शांति के एक नए दूत के रूप मे मान्यता प्रदान करेगा।

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

शोध परंपरा

भारतीय परम्परा में सेक्स
अब्दुल्ला
भारतीय परम्परा में सेक्स के विषय को लेकर खुली चर्चा करने से परहेज किया जाता रहा है, क्योंकि भारतीय समाज इस पूर्वमान्यता से ग्रसित है कि सेक्स एक ऐसा विषय है जो हमारी संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों को आघात पहुंचाता है। वस्तुतः भारतीय समाज सेक्स शब्द को ही पाप, अपराध और गंदगी का सूचक मानता है। यदि कोई दुस्साहस करके इस विषय को स्पष्ट करना या समझना चाहता है तो उन दोनो पर ही कामुक और अश्लील और पापी की मोहर लगा दी जाती है, जबकि हकीकत यह है कि सेक्स विषय न तो संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों पर कुठाराघात करता है और न ही समाज की युवा पीढी की दिशा भ्रमित करता है बल्कि सेक्स से संबंधित ज्ञानवर्द्धक विचार-विमर्श और सेक्स शिक्षा हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को सुदृढ करने के साथ ही भावी पीढी को नई दिशा प्रदान करते हुए उन्हें अनुचित यौन आचरण करने से रोक सकता है। अतः सेक्स के संबंध में समाज की उक्त पर्वमान्यता पूर्णतया निर्दोष नहीं है, क्योंकि हमारी संस्कृति में यौन व्यहवार को कभी भी अनुचित नहीं ठहराया गया, बल्कि हमारी संस्कृति में यह पूर्ण स्पष्ट है कि व्यक्ति के सर्वागीण विकास में यौन का विशेष महत्त्व है और उसके बिना किसी समग्र व्यक्तित्व की कल्पना निरर्थक साबित होती है। अतः सेक्स शिक्षा हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का हृास करने के बजाय उन्हें पुनजीवित करती है जिसकी हम भौतिक और पाश्चात्य सभयता के अंधानुकरण के प्रयास में भूलते जा रहे है। सेक्स या कामेच्छा को पश्चिमी सभ्यता ने अतिमहत्त्व दिया है तो हमारी संस्कृति में भी सेक्स पर अनुचित दबाव नही डाला गया । भारतीय संस्कृति में सेक्स को अनुचित माना गया है। यह संस्कृति विश्लेषण का एकपक्षीय निष्कर्ष है। वस्तुतः भारतीय संस्कृति की यह मान्यता है कि यौन संबंधों को केवल आवेग के शमन या शारीरिक आकर्षण तक सीमित कर देना मानवत्व की अवमानना है। किसी भी प्रकार की वेश्यावृति और बलात्कार अनैतिक है। किसी के आर्थिक हालात सामाजिक दीनता या शारीरिक कमजोरी का फायदा उठाकर अपनी यौनेच्छा पूरी करना एक प्रकार का शोषण है जो पशुता और मानसिक विकृति का परिचायक है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति में सेक्स का विस्तृत स्वरूप अस्वीकृत किया जाता है। पाश्वात्य-सभ्यता जहां सेक्स के पाशविक स्वरूप को ही महत्त्व देते हुए सेक्स को केवल आवेग शमन के जरिए के रूप में जानती हैं वहीं भारतीय विचारधारा की सदैव से ही यह धारणा रही है कि यौन - आचरण केवल दैहिक आवश्यकता पूर्ण करने वाली कि्रया - मात्र बनकर न रहे बल्कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का सृजनात्मक विकास भी करें। पाशविक जीवन और मानव जीवन में मौलिक अन्तर यही है कि पशु जहां सदैव आवेग द्वारा संचालित होते है, वहीं मानव उन आवेगों में भी सौन्दर्यबोध और मूल्यबोध को ढूंढ लेता है, क्योंकि यह सर्जनात्मक सोच ही है जो मनुष्य को जानवर से पृथक करके उसे चेतनाशील मनुष्य होने का सम्मान प्रदान करती है। अतः भारतीय संस्कृति में सेक्स विकृत स्वरूप को अनुचित ठहराने का यह तात्पर्य लगाना कि यौनवृति ही पूर्णतया अनुचित है सर्वथा गलत निष्कर्ष है, क्योंकि भारतीय संस्कृति और दर्शन में सेक्स को एक पृथक मूल्य पृथक मूल्य के रूप में स्वीकार करके यह सिद्व किया गया है कि यहां मानव की काम - वासनाओं की स्वाभाविक वृति को दमित नहीं किया गया बल्कि सेक्स के द्वारा व्यक्ति के व्यवहारिक जीवन मूल्यों की प्राप्ति के साथ साथ पारमार्थिक मूल्य (मोक्ष) की प्राप्ति में भी सेक्स एक सकि्रय सहायक की भूमिका अदा करता है । इस प्रकार स्पष्ट है कि जहां तक सांस्कृतिक मूल्यों का सवाल है तो सेक्स को भी यहां प्रथक मूल्य का सवाल है तो सेक्स को भी यहां प्रथक मूल्य का मान प्राप्त है जिसे मानव जीवन में अनावश्यक मानने के साथ ही परम मूल्य मोक्ष के सहायतार्थ रूप में भी अनिवार्य रूप से आवश्यक है। भारतीय दार्शनिक और सांस्कृतिक मूल्यों में सिद्वान्त पुरूषार्थचतुष्ट के चारों पुरूषार्थो-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में मोक्ष साध्य मूल्य है और धर्म, अर्थ के साथ साथ काम को भी साघन मूल्य के रूप में स्वीकार किया गया है। इस प्रकार भारतीय दार्शनिक दृष्टि से भोग और मोक्ष अभ्युदय और निःश्रेयस दोनों को ही मानव जीवन के लिए आवश्यक माना गया है। वास्तव में देखा जाय तो भारतीय दार्शनिक विचारधारा में अन्य तीन पुरूषार्थ मानव जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन काम पुरूषार्थ मानव जाति के अस्तित्व के बिना इसके मनुष्य जाति का अस्तित्व ही नहीं रहता और मानव अस्तित्व के बिना जीवन में मानव मूल्यो की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसीलिए भारतीय संस्कृति की यह मान्यता है कि पितृ-ऋृण की मुक्ति के लिए काम को मानना आवश्यक है, क्योंकि पितृ- ऋृण से मुक्ति सन्तानोत्पति द्वारा वंश परम्परा को कायम रखने से ही मिल जाती है जो काम पुरूषार्थ द्वारा ही संभव है। इसलिए भारतीय दर्शन में चार आश्रमों के अन्तर्गत गृहस्थाश्रम में रहकर ही मनुष्य काम पुरूषार्थ द्वारा वंश वृद्धि करके पितृ ऋृण से मुक्त होकर मानवीय अस्तित्व को संरक्षित करता है। काम पुरूषार्थ को स्वीकार करने के पीछे उपरोक्त नैतिक आधार के साथ साथ मनोवैज्ञानिक आधार यह है कि काम तृप्ति के बिना मनुष्य के अनैतिक होने का खतरा रहता है, क्योंकि मानवीय प्रकृति ही कुछ ऐसी होती है कि जिस प्रकार वह भोजन, वस्त्र, और आवास के बिना नहीं रह सकता उसी प्रकार काम तृप्ति के बिना भी वह नहीं रह सकता, लेकिन जैसा की फ्रायड ने माना है कि यह काम शक्ति इतनी अधिक है कि उसे आसानी से वश में नहीं किया जा सकता। इसीलिए कामसूत्र के रचियता वात्स्यायन का मानना है कि यदि मनुष्य अपनी कामात्मक भावना को कलाओं में लगा दे तो उसकी कामात्मक भावना की संतुष्टि होने के साथ ही उसकी कामात्मक भावना की संतुष्टि होने के साथ ही उसका सृजनात्मक विकास भी हो जाता है। इस प्रकार सेक्स को सांस्कृतिक मूल्यों में स्थान देकर भारतीय नीति में स्वतंत्रता को तो स्वीकृति प्रदान की गयी है परन्तु ’स्वेच्छाविहार‘ को नहीं । सेक्स स्वतंत्रता इस रूप में मान्य है कि यह व्यवहारिक जीवन को सुचारू रूप से संचालित करता है इस प्रकार स्वेट्जर और हेलर जैसे पाश्चात्य दार्शनिकों की यह धारणा धूमिल प्रतीत होती है कि भारतीय दर्शन व्यवहारिक जीवन से पलायन का निर्देश कर केवल परमार्थ को ही परमश्रेयस मानते हुए संन्यास और वैराग्य का ही पाठ पढाता है, लेकिन संस्कृति का यह निष्कर्ष निकालते समय पाश्चात्य विद्वान यह भूल जाते है कि भारतीय संस्कृति के आधार भूत ग्रंथ उपनिषदों में संन्यास को अनिवार्य नहीं माना गया । उनकी दृष्टि से एक गृहस्थी भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है। ऐसे अनेक प्राचीन ऋृषियों के उदाहरण मिलते हैं जो सन्यासी नहीं गृहस्थी थे। जैसे याज्ञवल्क्य, उद्दालक, श्वेतकेतु, जनक, अश्वपति, अजातशत्रु और प्रवाहरण आदि गृहस्थ और राजकार्य में संलग्न थे। वे गृहत्यागी सन्यासी नहीं थे। बल्कि गृहस्थ जीवन जीते हुए भी इन्होनें सहज बोध और अनुभाव के द्वारा अनेक नैतिक मूल्यों का साक्षात्कार किया । इस प्रकार स्पष्ट है कि यद्यपि मोक्ष यहां मानव-जीवन का परम श्रेयस है तथापित व्यवहारिक जीवन का परम श्रेयस है तथापित व्यवहारिक जीवन यहां उपेक्षित रहा हो ऐसा नहीं है, क्योंकि व्यवहारिक जीवन को भारतीय संस्कृति ने सदैव महत्व दिया है। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि सोलह संस्कारों में विवाह संस्कार और गर्भाधाना संस्कार सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है और ये दोनों संस्कार सेक्स के महत्त्व को उजागर करते है। इस प्रकार काम को एक मानव मूल्य और संस्कार के रूप में स्वीकार करके भारतीय संस्कृति ने यह सिद्व कर दिया है कि हमारे यहां व्यवहारिक जीवन का कभी निषेध नहीं किया जाता साथ ही केवल व्यवहारिक जीवन में खोकर अपने आत्म-अस्तित्व को खोने का निर्देश भी नही किया जाता बल्कि व्यवहार से परमार्थ प्राप्ति का पथ बताने वाली पथ प्रदर्शक की योग्यता रखने वाली संस्कृति का नाम है-भारतीय संस्कृति। अतः स्पष्ट है कि सेक्स स्वयं जो सांस्कृतिक मूल्यों में परिगणित है वह सांस्कृतिक मूल्यों की अवनति कैसे कर सकता है। तात्पर्य यह कि सेक्स संस्कृति को तोडने वाला औजार नहीं बल्कि जोडने वाला सेतु है। यहां यह स्पष्ट करना अनिवार्य है कि भारतीय संस्कृति में प्राण कहे जाने वाले उपनिषद् भी कामेच्छा के महत्व स्वीकार करके यह सिद्ध करते करते है कि सृष्टि-सर्जना करने वाली प्रभु इच्छा भी कामेच्छा द्वारा ही कि्रयांवित होती है, क्योंकि उपनिषेदेां के कुछ अवतरणों से ऐसा स्पष्ट होता है कि यह सम्पूर्ण सृष्टि काम पुरूषार्थ द्वारा सृजित होती हैं। इसको स्पष्ट करते हुए उपनिषदों में बताया गया है कि सर्वप्रथम ब्रह्म अकेला था, इसलिए उसका मन नहीं लगा। उसने दुसरे की इच्छा की और अपने ही शरीर को दो टुकडो में आपातयत पटक दिया । पटकने के लिए पत शब्द का प्रयोग किया गया है, उसी से पति और पत्नी बने । अब इस पुरूष तत्व और स्त्री तत्व का मेल हुआ और उससे मनुष्य जाति का निर्माण हुआ। अब स्त्री तत्व ने सोचा मुझे अपने शरीर में से ही उत्पन्न करके यहा पुरूष मेरे साथ संभोग करता है, हाय मैं छिप जाऊं। वह लज्जा से छिपकर गौ बन गई, पुरूष तत्व ने वृषभ बनकर उसके साथ संयोग किया जिससे गो जाति का निर्माण हुआ। अब स्त्री तत्व लज्जा में छिपकर कभी घोडी बनी, कभी गर्दभी और कभी बकरी बनी। पुरूष तत्व की तो चूंकि सृष्टि रचनी थी इसलिए वह भी इनके विपरीत लिंग धारण करके संयोग करता गया और इस प्रकार चिउंटी-पर्यन्त जितने भी संसार के जोडे है उन्हें उस प्रथम पुरूष तत्व और स्त्री तत्व ने संभोग करके पैदा किया (वृहदारणय उपनिषद् १/२/३/४) यहां सेक्स के समष्टिगत-स्वरूप को स्पष्ट किया गया है। इसी प्रकार सेक्स के व्यष्टिगत-स्वरूप को भी उपनिषेदों में स्पष्ट किया गया है। व्यक्ति के वैवाहिक जीवन से संबंध रखने वाला यौन-कर्म सेक्स का व्यष्टिगत स्वरूप है। वैवाहिक जीवन में सेक्स के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए उपनिषेदों में बताया गया है कि - जिस प्रकार महाभूतों का रस पृथ्वी है, उसी प्रकार पुरूष का रस वीर्य है, इसलिए प्रजापति ने ईक्षण किया कि यह वीर्य कितना सामथ्य शाली है, इसे यह पुरूष यों ही न बिगाडे, इसलिए इसकी प्रतिष्ठा बना दूं और उसने स्त्री को रचा। उनका आपस में विवाह होता है। विवाह के अन्तर पत्नि पति को सहयोग न दें तो पति उसे सुन्दर सुन्दर वस्तुएं लाकर दे और उससे कहे कि अपने इन्दि्रय बल से और उससे कहे कि अपने इन्दि्रय बल से और यश से मै तुझे भी यशस्विनी बनाता ह। इस प्रकार पति पत्नी दोनों यशस्विनी हो जाते है। इससे आगे कहा गया है कि अगर पति चाहे कि उसकी पत्नी सन्तानोपति करे, तो उसके साथ अपनी कामेच्छा आौर वाणी का सम् गर्भदान कर-दोनो के एक रूप होने से स्त्री गर्भवती हो जाती है। (वृहदारण्यक उपनिषद ६/४/१,२) लेकिन ऐसा भी नहीं है कि रति कि्रया केवल सन्तान प्राप्ति के जरिये के रूप में ही मान्य ,क्योंकि उपनिषदों में स्पष्ट शब्दों में आया है कि यदि पति पत्नी किसी कारणवश गर्भधान नहीं करना चाहते है ता उसके लिए यौन कर्म करते समय इस मंत्र का जाप करें ’इन्द्रेयेण ते रेतसा रेत आददे (बृहदारण्यक उपनिषद्)‘ ऐसा करने पर पत्नी गर्भवती नहीं होती है। इस प्रकार वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति ने गर्भ निरोध के लिए अनेक तामसिक उपाय बताए गऐ हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति में केवल एक मंत्र के जाप मात्र से ही गर्भनिरोध संभव हो जाता है। आवश्यकता है तो संस्कृति के उस स्वरूप से परिचय करवाने की जिस पर सदैव पर्दा रखा जाता है। इस प्रकार यहां औपनिषिदीक दृष्टि से सेक्स के स्वरूप और महत्व को स्पष्ट किया गया है। वस्तुतः काम को मानव मूल्य के रूप में प्रतिस्थामित करने वाले ऋृषि शायद आज के मनोवैज्ञानिकों से अधिक सजग थे, क्योंकि काम को मानव मूल्य के रूप में स्वीकार करने का उपनिषदीय मनोवैज्ञानिक आधार यही है कि मनुष्य मानवता और पशुता का समिश्रिण है और जब तक उसकी पाशविक वृति की तुष्टि नहीं हो जाती तब तक उसके मनतत्व को नहीं उभारा जा सकता। इसलिए काम को जीवन में अनिवार्य रूप से शामिल किया है, क्योंकि यौन तृप्ति के बिना मनुष्य खालीपन की अनुभूति करता है और इस खालीपन की भरने के लिए वह नैतिकता की सीमा लांघ सकता हैं। इसलिए शायद काम स्वयं तृतीय पुरूषार्थ के रूप में नैतिक मूल्यों में शामिल किया गया है। लेकिन इसका तात्पर्य यह कतई नहीं कि मनुष्य अपने यन आचरण के औचित्य-अनौचित्य पर कोई विचार न करें अथवा हर प्रकार की यौन प्रवृति को उचित समझे। वस्तुतः सेक्स अपने सुकृत स्वरूप मेंही भारतीय संस्कृति और दर्शन म मान्य रहा है। उसका विकृत स्वरूप, यहां सदैव से ही अस्वीकार्य रहा है। सेक्स अपने सुकृत-स्वरूप में सत्य , शिव और सुन्दर हैं। अपने इस सत्य , शिव और सुन्दर स्वरूप में सेक्स एक पवित्र यज्ञ है। सेक्स को एक पवित्र यज्ञ के रूप में प्रतिस्थापित करते हुए वृहदारण्यक उपनिषद (६/४/३) में स्पष्ट शब्दों में आया है कि पुरूष एक पत्नी वृत का पालन करते हुए यौन कि्रया केा एक पवित्र यज्ञ के समान समझ कर सम्पन्न करें । इसीलिए भारतीय संस्कृति में यह गृहस्थी का यह आचार धर्म है कि पति अपनी पत्नी से यौन कर्म करते समय अपने मस्तिष्क में यह विचार रखे कि यह एक यज्ञ कर्म के समान है जिसमें पत्नी का जनन स्थान ही यज्ञ की वेदी है, उसकी इस वेदी रूपी जनन स्थान के बाह्म लोम यज्ञ में बिछाने वाले मृग चर्म है और जिस प्रकार यज्ञ कर्म में स्त्रुवा द्वारा घृत है, उसी प्रकार मैथुन-कर्म में पुरूष का लिंग ही स्त्रुवा है जिसके द्वारा स्त्री वेदी रूपी जननी स्थान के अन्दर शुक्र की हवि दी जाती है। इन यौन रूपी पवित्र यज्ञ का फल सन्तान के रूप में मनुष्य को प्राप्त होता है, क्योंकि यज्ञ का कोई न कोई फल सन्तान के रूप में मनुष्य को प्राप्त होता है, क्योंकि यज्ञ का कोई न कोई फल अवश्य मिलता है। अतः स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति में सेक्स को कभी वर्जित नहीं माना गया बल्कि उसको एक पवित्र यज्ञ के समान सम्पन्न करने की शिक्षा प्रदान की जाती है। सेक्स अपने इस शुद्व स्वरूप में ही हमारी संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित रखते हुए उन्हें पुनजीवित करने कि क्षमता रखता है। वर्तमान में हमारे समाज का एक बहुत छोटा हिस्सा ही उपरोक्त शास्त्रीय सेक्स से परिचित है। शास्त्रीय अर्थात हमारी संस्कृति के पवित्र शास्त्रों में उल्लेखित मैथुन कर्म। लेकिन समाज का एक बहुत बडा भाग संस्कृति के इस स्वरूप से अपरिचित है और साथ ही वह एक प्रकार के मनोरोग से भी ग्रसित है जिसमें वे यह सोचते है कि हमारे सांस्कृतिक मूल्य और संस्कृति सेक्स के प्रति हेय दृष्टि रखते हैं क्योंकि हमारी संस्कृति में सेक्स के जिस विकृत स्वरूप को वर्जित माना गया है उसका तो हमारे यहां संस्कृति के तथाकथित रखवालों ने खुलकर प्रचार प्रासार किया लेकिन भारतीय संस्कृति में सेक्स का जो शास्त्रीय स्वरूप पूज्य मानाा जाता है उसको मौन रखा गया। जिसका भंयकर और विनाशकारी परिणाम यह है कि आज समाज का एक बहुत बडा भाग यौन रोगों से ग्रसित है। कहने का तात्पर्य यह है कि मैथुन विज्ञान के जिस विकृत स्वरूप को प्राचीन ऋृषियों ने हेय और निकृष्ट बताया है उसको तो हमारे यहां सदैव प्रवचनों के जरिए समाज के समक्ष समय समय पर प्रस्तुत किया जाता रहा है लेकिन सेक्स के सुकृत स्वरूप का ज्ञान व्यक्ति के लिए अनिवार्य माना गया, इसका जिक्र बहुत कम किया जाता है। इसका कारण शायद ज्ञान की कमी हो सकता है, क्योंकि भारतीय विचारधारा में ऐसा स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि काम के विषय से घृणा नहीं करनी चाहिए। अरूण के पुत्र विद्वान उद्दालक और नाक मौद्रल्य तथा कुमारहरीत ऋृषियों ने यहां तक कहा है कि ऐसे व्यक्ति जो निरिन्दि्रय , सुकृतहीन, मैथुन-विज्ञान से अपरिचत होकर भी मैथुन कर्म में आसक्त होते है, उनकी परलोक में दुर्गति होती है। स्पष्ट है कि यौन के विकृत स्वरूप का अनुसरण करना पाप का सूचक है, लेकिन इसके शास्त्रीय स्वरूप से अपरिचित होना इससे भी बडा पाप है, क्योंकि जो सुकृत सेक्स से अपरिचित है वही विकृत सेक्स का अनुसरण करता है । इसलिए भारतीय दृष्टि से सेक्स अपने शास्त्रीय स्वरूप मे एक यज्ञ कर्म के समान पवित्र कि्रया है लेकिन पति यदि अपनी पत्नी को एक यज्ञ के समान नहीं समझता उसे केवल भोग्य वस्तु रूप जानकर उसका उपभोग करता है तो यह अवश्य ही अपनी पत्नी का यौन शोषण है जो अनैतिकता है शायद इसीलिए बर्नाड शॉ जैसे विचारकों ने शादी को जीवन पर्यन्तु कानून सम्मत वेश्यावृति की संज्ञा दी है क्योंकि वेश्यालय में पुरूष एक रात के लिए किसी स्त्री से संभोग का अधिकार खरीदता है लेकिन अपनी धर्म पत्नी से यह हम वह आजीवन के लिए एक साथ खरीद लेता है। पत्नी को धर्म पत्नी तो कहे लेकिन यदि धर्मानुसार यौन कर्म न करें तो यह पाप है । इसलिए भारतीय विचारधारा में सेक्स को सांस्कृतिक मूल्य स्वीकारते हुए उसे यज्ञ के समाना पवित्र कर्म माना है। निष्कर्षतः यह कहा जाता है कि भारतीय विचारधारा में सेक्स के जिस शुद्व स्वरूप को पूजनीय और पवित्र यज्ञ माना गया है। जब तक सेक्स का यह शास्त्रीय स्वरूप समाज के समक्ष खृलकर प्रस्तुत नहीं किया जाएगा तब तक सडक पर पूंछ उठाए मादा के पीछे पीछे भागते और जबरन बल प्रयोग द्वारा मैथुन करते कुत्ते, बकरे और सांड तथा फुटपाथ पर बिकने वाला निम्न कोटि का अश्लील साहित्य ही समाज में सेक्स को समझाने वाले एकमात्र शिक्षक होंगे। सेक्स का यह पाशविक स्वरूप ही युवा पीढी की आंखो के सामने, जाने अनजाने बार बार गुजरता है और उनके मासूम मस्तिष्क पर अंकित जाता है। वे इसे ही सेक्स का शुद्व और सही रूप समझने को बाध्य हो जाते है। इसका भयंकर और विनाशकारी परिणाम यह होता है कि विवाहोपरान्त उनका सेक्स जीवन पाश्विक वृति का बन कर रह जाता है। जिसमें आनन्द मिलने की बजाय पीडा मिलती है। सही जानकारी के अभाव में उनके जीवन में जहर घुल जाता है। लेकिन यदि हमारी संस्कृति में बताए गए सेक्स के शुद्व स्वरूप की शिक्षा प्रदान की जाए तो पीढी का वैवाहिक जीवन अमृतमय बन सकता है। अतः संस्कृति के शास्त्रीय सेक्स की अनुभूति इस धरती पर ही स्वार्गीयनुभूति प्रदान करने वाली साबित होती है।

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

मुलाकात


सहारनपुर मंडल के पुलिस उप महानिरीक्षक पी के श्रीवास्तव से एक मुलाकात
दस जिलों की कप्तानी करने के बाद सहारनपुर आये कप्तान पी के श्रीवास्तव पुलिस महकमे के अलावा आम जनताओं के बीच भी काफी लोकप्रिय अधिकारी हैं ! व्यवहार कुशलता,प्रशाशनिक प्रतिबधता,कर्तब्य निष्ठता ,ऑर कर्म के प्रति पूरी तन्मयता इनकी खासियतों में खास शुमार हैं ! फतेहपुर,उन्नाव,सिधार्थनगर,मौ,रायबरेली,जेपीनगर, जौन्पुर,एटा,मैनपुरी ऑर झांसी डी आई जी इंटेलीजेंस उत्तरप्रदेश ऑर अपराध शाखा में अपनी कार्यकुशलता दिखाने के बाद विगत वर्ष २५ अक्तूबर २००९ को डी.आई.जी.के रूप में श्री श्रीवास्तव सहारनपुर आये ! सहारनपुर की भौगोलिक स्थिति के सात ही यहाँ की आवोहवा ऑर लोगों के व्यवहार से काफी प्रभावित हैं वहीं कहते हैं की "अपराध के दृष्टिकोण से सहारनपुर जितना सामान्य परिवेश में है वहीं मुजफ्फरनगर अपराध की दुनियां में काफी सम्बेदंशील है, बल्कि मुजफ्फरनगर को अगर प्रदेश का क्राइम कैपिटल कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं ! साम्प्रदायिक मामले हों ,जातीय हिंसा हो या गन्ना आन्दोलन सभी में मुजफ्फरनगर अव्वल है जो सच मच चिंतनीय है ! यहाँ अपराध का ज्यादा होने के पीछे सबसे बड़ा कारण जो मुझे दिखा वो है रिश्तों में पवित्रता का नहीं होना !"
एक संछिप्त मुलाक़ात में उन्होंने कहा कि "मैंने यहाँ आने के बाद विभाग की कई खामियों को मिटने या उन्हें सही दिशा देने की ओर प्रमुखता के साथ ध्यान दिया ऑर इसमें मुझे काफी हद तक कामयाबी भी मिली है साथ ही आगे भी मेरा काम अपनी समुचित गतिविधियों के साथ चल रहा है ! इसका मुआयना आप मीडिया कर्मियों ऑर स्थानीय लोगों जनप्रतिनिधियों के द्वारा समय समय पर किया जाता रहा है !"श्रीवास्तव ने बताया कि मुज्कफ्फर्नगर में तीन पचास पचास हजार के इनाम घोषित अपराध कर्मियों की ओर हमारा ध्यान है ऑर उनको हाकर हाल में यातो कानून के हवाले या भगवान(इन्कौन्टर)के हवाले करना का हमारा मिशन कार्यरत है ! इनमे से दो के सन्दर्भ में हमें अभी तक वांछित सुराग नहीं लग पाया है ल;यकीन एक विनोद बावला के बारे में हमने काफी हद तक सुरगें तलाश ली हैं ऑर बहुत जल्द ही उसे हम काबू में ले लेंगें ! "
पुलिस महकमें में व्याप्त विभीन्न प्रकार की अनियामिततायों के बारे में चर्चा करने पर श्रीवास्तव जी का कहना है कि " अनियमितताएं हैं मैं मानता हूँ लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियां भी होती हैं जिसके तहत हमें कार्यवाई करने में काफी नियोजित तरीकों का इस्तेमाल करना होता है ! हने अपने सभी थानों ऑर अधिकारियों को स्पष्ट कहा हुआ है कि आप सरकार का पैसा ख्जाते हो तो वफादारी भी पुरी करनी होगे ! हमारे पास केसी भी अधिकारी की शिकायत आती है तो तुरत उसपर एक्शन लेता हूँ !हम खुद इस पर ध्यान रखते हैं कि हमरे कोई भी अधिकाई गलत नहीं करें उन्हें जनता का पूरा सहयोग ऑर कानून के अनुसार अपना किर्द्फर निभाना चाहिए अन्यथा वे सजा के लायक हैं जो उन्हें मिलनी ही चाहिए "सहारन पुर मंडल के कुछ थानों पर बोर्डर(गृह) के सीमा पर निवासित अधिकारियों के पदस्थापित होने की बात पर श्रीवास्तव ने कहा " हम इस तरह की सूचनाओं से भिग्य हैं ऑर ऐसे बहुत से अधिकारी जो बोर्डर के निवासी हैं हमने उन्हें तबदाला भी किया है फिर भी कुछ जगहों पर अभी भी ऐसे अधिकारी हैं जो कुछ तो हाल फिलहाल में सेवामुक्त हो रहे हैं ऑर कुछ के अदला बदली की कार्यवाई प्रक्रीया में है ! एकदम से हम तबादला नहीं कर रहे हैं क्योंकि जिम्मेदारियों के दायरे म,एन सोच समझ ऑर हिकमत का सहारा लेने ही परता है !"डी आई जी श्रीवास्तव प्रतिदिन आम जनताओं की मुलाकात के बहुत पाबंद भी हैं ! हर रोज दसो मामलात जो आम लोग लेकर इनके पास आते हैं उसका विधिवत ऑर त्वरित समाधान भी करते हैं ! इनकी लोकप्रियता का एक सबसे महत्वपूर्ण वजह उनकी मिलनसारिता ऑर जनसेवा की भावना है जिसके बदौलत इन्हें आम जन प्रतिनिधियों से लेकर इनके मातहत अधिकारी का भी पूरा समर्थन ऑर सहयोग मिलता रहता है ! कहते हैं किसी भी कमियों या खामियों को दूर करने हेतु बुधिमत्ता ऑर सोच समझ का सहरा लेना काफी जरुरी ऑर फायदेमंद है ! "
पुलिस महकमें की कुछ कार्यों पर एक नजर डालें तो एक ओर अपराधों में कमी का रुख तो कम दिख ही रही है ल;यकीन कप्तान साहेब की ओर से इस सम्बन्ध में आश्वाशन जरुर मिल रहा है जल्द से जल्द इसपर विधिवत कार्यवाही होगे ऑर निश्चित रुपें हम आम जनों की सुरख्षा ऑर अपराधों की कमी जरुर दिखलायेंगे ! आइए एक नजर इस संछिप्त मूल्याङ्कन पर नजरसानी करते चलें :
हालांकि गत वर्ष की अपेक्षा अभी तक जिले में हत्या के ग्राफ में कमी आई है, लेकिन अपहरण, लूट व सड़क हादसों में वृद्धि दर्ज की गई है। खाकी वर्दी के दागदार होने का सिलसिला भी तेज हुआ है। चोरों ने तो पुलिस के हर प्रयास को नाकाम किया है। नये साल की शुरूआत ही लेन-देन के विवाद में नेहरू नगर निवासी करण पुत्र किशनदास की हत्या हुई थी। उसके बाद 16 जनवरी को देवबंद के लालावाला निवासी वृद्ध राम सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। 20 जनवरी को नंदी फिरोजपुर के अनिल का शव खेत में पड़ा मिला, उसकी गला घोंट कर हत्या की गई थी। लूट का सिलसिला शुरू हुआ इस्लामनगर में जानखेड़ा के विनोद से कार सवार बदमाशों ने एक जनवरी को बाइक, मोबाइल व नकदी लूट की वारदात से। 28 जनवरी तक लूट की 26 घटनाएं हुईं। दिसंबर, 08 में जहां चोरियों की संख्या 50 तक पहुंची थी, वहीं जनवरी 10 में यह आंकड़ा 60 पार कर चुका है। सड़क हादसों का ग्राफ एक बार फिर हत्याओं से तीन गुना रहा। यानि अब तक 34 लोगों की जान जा चुकी है। जनवरी माह में यह आंकड़ा औसतन एक व्यक्ति प्रतिदिन है, जो यातायात सुरक्षा की पोल जरूर खोलता है। अपहरण के तीन केस सामने आये हीं, जो अभी तक अनसुलझे पड़े हैं, जबकि ठगी में 22 जनवरी को शहर के दो बैंकों में 6.5 लाख रुपये का बड़ा कारनामा सामने आया था। इसके अलावा जनकपुरी क्षेत्र में सिंगापुर व देवबंद क्षेत्र में सऊदी अरब भेजने के नाम पर लाखों की ठगी हो चुकी है। पुलिस के दागदार होने के नौ मामले अब तक सामने आ चुके हैं।इनमें मंडी कोतवाली की शहादत चौकी का सिपाही नदीम, घटना छिपाने पर मिर्जापुर एसओ डीके तिवारी व मंडी क्षेत्र में ही रुपये न देने पर चाकू रखने की धारा में जेल भेजने पर सिपाही नवीन व चरण सिंह निलंबित हो चुके हैं।


कप्तान साहेब के दिशानिर्देशन में पुलिस प्रशासन ने जागते हुए सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने की शुरूआत की है। इसके लिए सुरक्षा संभालने की सबसे निचली इकाई चौकीदारों को जहां सूचीबद्ध करने की तैयारी शुरू कर दी है, वहीं इन्हें सुरक्षा के कई उपकरणों से भी लेस किया जाएगा। इन चौकीदारों को वर्दी भी देने की तैयारी पुलिस प्रशासन कर चुका है। हर गली मोहल्ले के चौकीदार को सूचीबद्ध किये जाने की कवायद एस एस पी अमित चन्द्र ने की है जिसके बारे में पूछे जाने पर मान्य डी आई जी ने उनकी सराहना तो अवश्य की है साथ ही इसकी आवश्यकता की उपयुक्तता भी जतलाया है ,साथ ही उन्हें प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी से संबद्ध कराया जाएगा। यहीं नहीं उनका पूर्ण ब्यौरा जहां थाने में दर्ज होगा, वहीं अलग पहचान के लिए वर्दी भी दी जाएगी। इन लोगों को ऐसे ट्रेंड किया जाएगा कि सूचना तुरंत पुलिस तक पहुंचे। एसएसपी ऑर कप्तान साहेब मानते है कि इसके कई फायदे सामने आएंगे। खासकर चोरी की वारदातों पर अंकुश लगाने में यह चौकीदार सहयोग देंगे। यहीं नहीं वारदात होने पर इनकी जिम्मेदारी भी तय की जाएगी।जिले में बढ़ती चोरियों पर रोकथाम की मांग को लेकर भाजपाई और विभिन्न व्यापारिक संगठन के लोगों ने अभी पिछले दिनों एसएसपी से मुलाक़ात कर वस्तुस्थिति पर चर्चाएँ की थी । उन्होंने जहां कपड़ा व्यापारी राजीव जग्गा के यहां हुई 20 लाख की चोरी के शीघ्र खुलासे की मांग की, साथ ही व्यापारिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर भी रणनीति तैयार करने की बात रखी। श्रीवास्तव ने इसपर समुचित कार्यवाही होने की सूचना दी ऑर कहा कि इसपर पूरा ध्यान देते हुए हम इसके निवारण की प्रक्रिया अतिशीघ्र करेंगे !
अब्दुल्ला